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धर्मपरीक्षा-११ 'पत्यौ प्रवजिते क्लीबे प्रणष्टे पतिते मृते । पञ्चस्वापत्सु नारीणां पतिरन्यो विधीयते ॥१२ तेनातो विधवाग्राहि तापसादेशतिना। स्वयं हि विषये लोलो गुर्वादेशेन किं जनः ॥१३ तस्य तां सेवमानस्य कन्याजनि मनोरमा। नीति सर्वजनाभ्या संपत्तिरिव रूपिणी ॥१४ हरनारायणब्रह्मशक्रादीनां दिवौकसाम् । या दुर्वारमधिष्ट वर्धयन्ती मनोभवम् ॥१५ तप्तचामीकरच्छाया छाया नामाजनिष्ट या। कलागुणैर्बुधाभीष्टः सकलैनिलयोकृता ॥१६
१२) १. मात्रा पुत्र्या भगिन्या वा पुत्रार्थ प्रार्थितो नरः। यः पुमान् न रतौ भुङ्क्ते स भवेत् ब्रह्महा
पुनः (?)। १४) १. मण्डपकौशिकस्य । २. न्यायम् । १५) १. ब्रह्मा।
यथा-पतिके संन्यासी हो जानेपर, नपुंसक प्रमाणित होनेपर, भाग जानेपर, भ्रष्ट हो जानेपर और मर जानेपर; इन पाँच आपत्तियोंमें स्त्रियोंके लिए आगममें दूसरे पतिका विधान है-उक्त पाँच अवस्थाओंमें किसी भी अवस्थाके प्राप्त होनेपर स्त्रीको अपना दूसरा विवाह करनेका अधिकार प्राप्त है ।।१२।।
तपस्वियोंके इस प्रकार कहनेपर उसने उनकी आज्ञानुसार विधवाको ही ग्रहण कर लिया। ठीक ही है, मनुष्य विषयोपभोगके लिए स्वयं लालायित रहता है, फिर गुरुका वैसा आदेश प्राप्त हो जानेपर तो कहना ही क्या है-तब तो वह उस विषयसेवनमें निमग्न होगा ही ।।१३॥
इस प्रकार सब जनोंसे प्रार्थनीय नीतिके समान उस विधवाका सेवन करते हुए उसके एक मनोहर कन्या उत्पन्न हुई जो मूर्तिमती सम्पत्तिके समान थी ॥१४॥
वह कन्या महादेव, विष्णु, ब्रह्मा और इन्द्र आदि देवताओंके कामदेवको वृद्धिंगत करती हुई क्रमशः वृद्धिको प्राप्त हुई ।।१५।।
__ वह तपे हुए सुवर्णके समान कान्तिवाली थी। उसका नाम छाया था । वह विद्वानोंको अभीष्ट सब ही कला-गुणोंका आधार थी ॥१६॥
१२) अ प्रतिष्टे । १३) अ तेनैव for तेनातो; ड इ विधिनाग्राहि; अ लोभो for लोलो; इ किं पुनः । १४) इ नीतिः..." "भ्यर्थ्या । १५) ब मनोभुवम् । १६) क ड कलागुणगणैरिष्टैः; बकृताः ।
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