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धर्मपरीक्षा-१० चक्रिणो द्वादशाहन्तश्चतुर्विशतिरीरिताः। प्रत्येकं नवसंख्याना रामकेशवशत्रवः ॥५५ ते सर्वेऽपि व्यतिक्रान्ताः क्षोणीमण्डलमण्डनाः । ग्रस्यते यो न कालेन स भावो नास्ति विष्टपे ॥५६ विष्णूनां यो ऽन्तिमो विष्णुर्वसुदेवाङ्गजो ऽभवत् । स द्विजैर्गदितो भवतैः परमेष्ठी निरञ्जनः ॥५७ ब्यापिनं निष्कलं ध्येयं जरामरणसूदनम् । अच्छेद्यमव्ययं देवं विष्णुं ध्यायन सीदति ॥५८ मीनः कूर्मः पृथुप्रोथो नारसिंहो ऽथ वामनः । रामो रामश्च कृष्णश्च बुद्धः कल्को दश स्मृताः ॥५९ यमुक्त्वा निष्कलं प्राहुर्दशावतंगतं' पुनः। भाष्यते स बुधैप्तिः पूर्वापरविरोधतः ॥६०
५५) १. कथिताः । ५६) १. गताः । २. क संसारे। ५८) १. क शरीररहितम् । २. क नाशनम् । ३. क न कष्टं प्राप्नोति । ६०) १. अवतारगतम् ।
वे शलाकापुरुष ये कहे गये हैं-बारह ( १२) चक्रवर्ती, चौबीस (२४) तीर्थंकर जिन तथा बलदेव, नारायण और प्रतिनारायण इनमेंसे प्रत्येक नौ-नौ (९४३= २७ ) ।।५५।।
पृथिवीमण्डलको भूषित करनेवाले वे सब ही मृत्युको प्राप्त हो चुके हैं। लोकमें ऐसा कोई भी पदार्थ नहीं है जो कि कालके द्वारा कवलित न किया जाता हो-समयानुसार सभी का विनाश अनिवार्य है ॥५६॥
विष्णुओंमें वसुदेव का पुत्रस्वरूप जो अन्तिम विष्णु हुआ है उसे भक्त ब्राह्मणोंने निर्मल परमेष्ठी कहा है ॥५७॥
उनका कहना है कि जो व्यापी, शरीरसे रहित, जरा व मरणके विनाशक, अखण्डनीय और अविनश्वर उस विष्णु देवको अपने ध्यानका विषय बनाकर चिन्तन करता है वह क्लेशको प्राप्त नहीं होता है ॥५८||
मत्स्य, कछुवा, शूकर, नृसिंह, वामन, राम (परशुराम ), रामचन्द्र, कृष्ण, बुद्ध और कल्की, ये दस विष्णु माने गये हैं-वह इन दस अवतारोंको ग्रहण किया करता है ।।५९||
जिस ईश्वरको पूर्व में निष्कल-शरीररहित-कहा गया है उसे ही फिर दस अवतारों को प्राप्त-क्रमसे उक्त दस शरीरोंको धारण करनेवाला-कहा जाता है। यह कथन पूर्वापरविरुद्ध है। इसीलिए तत्त्वज्ञ जन उसे आप्त ( देव ) नहीं मानते हैं ॥६॥
५५) ड इ संख्यानं । ५७) ब इ विष्णूनामन्तिमो। ५९) ब इ पृथुः पोत्री, क ड पृथुः प्रोक्तो; ब रामश्च for कृष्णश्व । ६०) अ यो मुक्तो निष्कलं ।
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