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रागान्धलोचनो रक्तो' द्विष्टो द्वेषकरः खलः । विज्ञानविकलो मूढो व्युद्ग्राही स मतः खलु ॥१ पैत्तिको विपरीतात्मा चूतच्छेदो ऽपरीक्षकः। सुरभित्यागी चाज्ञानी सशोको गुरुविक्रयी ॥२ विक्रीतचन्दनो लोभी बालिशो निविवेचकः । दशैते यदि युष्मासुभाषमाणेश्चके तदा ॥३ अवादिषुस्ततो विप्रा' भद्रास्माभिविचारकैः । द्विजिह्वः शास्यते सद्यः सौपर्णैरिव पन्नगः ॥४
१) १. यः । २. दुष्टः। ३) १. क ब्राह्मणेषु मध्ये । २. ईदृश्योः [ शः ] को ऽपि अस्ति । ३. अहं बिभेमि । ४) १. हे । २. अस्माभिः शिक्षापनं दीयते । ३. गरुडैः ।
जिसके नेत्र रागसे अन्धे हो रहे हैं ऐसा रक्त पुरुष, द्वेष करनेवाला दुष्ट द्विष्ट पुरुष, विवेकके रहित मूढ़ पुरुष, व्युग्राही माना गया दुष्ट पुरुष, विपरीत स्वभाववाला पैत्तिक ( पित्तदूषित ), योग्य-अयोग्यका विचार न करके आमके वृक्षको कटवानेवाला (आम्रघाती), अज्ञानतासे उत्तम गायका परित्याग करनेवाला (क्षीरमूढ़), अगुरुको जलाकर पीछे पश्चात्ताप करनेवाला, लोभके वश नीमकी लकड़ी लेकर उत्तम चन्दनको बेचनेवाला और विवेकबुद्धिसे रहित मूर्ख; इस प्रकार मैंने जिन दस प्रकारके मृोंका यहाँ वर्णन किया है वे यदि आप लोगोंके मध्य में हैं तो मैं कुछ बोलते हुए डरता हूँ ॥१-३॥
मनोवेगके इस कथनको सुनकर वे ब्राह्मण बोले कि हे भद्र पुरुष ! हम सब विचारक-विवेकी-हैं। जिस प्रकार गरुड़विद्याके ज्ञाता ( मान्त्रिक, अथवा गरुड़ पक्षी) दो जिह्वावाले सर्पको शीघ्र दण्डित किया करते हैं, उसी प्रकार हम दुष्ट जनको शीघ्र दण्डित किया करते हैं ॥४॥
१) ब द्वेषपरायणः ; इ खलु for खलः ; ब स्वमतग्रहः, क समतग्रहः ; २) अ अज्ञानसुरभित्यागी, ब अज्ञानः सुरभित्यागी। ३) अ ब निविवेचनः । ४) इ पन्नगैः ।
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