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धर्मपरीक्षा-५ वृक्षतृणान्तरितो मम तीरे तिष्ठ निरीक्षितुमागतिमस्य । कोपपरेण कृते मम धाते पूत्कुरु सर्वजनश्रवणाय ॥९० माममुना निहतं क्षितिनाथो दण्डममुष्य करिष्यति मत्वा । तां सुत भूतिमपास्य समस्तां येन मरिष्यति गोत्रयुतो ऽयम् ॥९१ इत्थम, निगदन्तमवद्यं मृत्युरुपेत्य जघान निहीनम् । तस्य चकार वचश्व तनूजः पापपरस्य भवन्ति सहायाः ॥९२ वीक्ष्य परं सुखयुक्तमधीर्यो द्वेषपरः क्षणुते म्रियमाणः । तस्य विमुच्य कृतान्तमदन्तं को ऽपि परोऽस्ति न बोधविधायी ॥१३ वक्रदासतनयस्य न वक्रो यश्चकार वचनं हितशंसि। तत्समा यदि भवन्ति निकृष्टाः सूचयामि न हितानि तदाहम् ॥९४
९०) १. आगमनम् । २. स्कन्देन । ३. क पापयुक्तं वचनम् । ९१) १. स्कन्दस्य । २. गृहीत्वा । ९२) १. वक्रम् । २. पापरतस्य पुरुषस्य । ९३) १. क न सहते, मारयति । २. भुञ्जन्तं, भक्षमाणम् । ९४) १. कथित।
सुनानेके लिए चिल्ला देना कि मेरे पिताको स्कन्धने मार डाला। तब राजा मुझे उसके द्वारा मारा गया जानकर उसकी समस्त सम्पत्तिको हरण करता हुआ उसे दण्डित करेगा। इससे यह सकुटुम्ब मर जायेगा ।।८९-९१॥
इस प्रकारसे वह बोल ही रहा था कि इसी समय मृत्युने आकर उस निकृष्ट पापीको नष्ट कर दिया। उधर लड़केने उसके वचनको पूरा किया : ठीक है-जो पापमें तत्पर होता है उसे सहायक भी उपलब्ध हो जाते हैं ।।९२॥
जो मूर्ख मनुष्य मरणोन्मुख होता हुआ दूसरेको सुखी देखकर वैरके वश उसका घात करना चाहता है उसको अपना ग्रास बनानेवाले यमराजको छोड़कर दूसरा कोई भी प्रबुद्ध नहीं कर सकता है ॥२३॥
जिस वक्र ग्रामकूटने अपने पुर. क्रदासके हितके सूचक कथनको नहीं कियातदनुसार निदोष आचरणको नहीं किया-उसके समान निकृष्टजन यदि आप लोन के मध्यमें हैं तो मैं हितकी सूचना नहीं करता हूँ ॥९४॥
९१) क ड इ पुत्र for गोत्र ।
९२) ब क विहीनम् ।
९०) क फूत्कुरु। ९४) इ यच्चकार ।
९३) क इ क्षुणुते ।
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