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अमितगतिविरचिता मनुष्याणां पशूनां च परमेतद्विभेदकम् । प्रथमा यद्विचारज्ञा निविचाराः पुनः परे ॥६१ असूचि चूतघातीत्थं बहिर्भूतविचारिणः । सांप्रतं कथ्यते क्षीरं श्रूयतामवधानतः ॥६२ छोहारविषये ख्याते सागराचारवेदकः । वणिक सागरदत्तोऽभूज्जलयात्रीपरायणः ॥६३ उत्तीर्य सागरं नक्रमकरग्राहसंकुलम् । एकदा पोतमारुह्य चौलद्वीपमसौ गतः ॥६४ वाणी जिनेश्वरस्येव सुखदानपटीयसी। गच्छता सुरभिर्नीता तेनैका क्षीरदायिनी ॥६५ गत्वा द्वीपपतिर्दष्टो वणिजा तेन तोमरः। प्राभृतं पुरतः कृत्वा व्यवहारपटीयसा ॥६६ अन्येधुः पायसों' नीत्वा शुभस्वादां सुधामिव । तोमरो वीक्षितस्तेन कायकान्तिवितारणीम् ॥६७
६२) १. कथितः। ६३) १. समुद्रशास्त्रस्य वेदकः । २. जलगमने । ६५) १. गौः। ६७) १. क क्षीरम् ।
मनुष्य और पशुओं में केवल यही भेद है कि मनुष्य विचारशील होते हैं और पशु उस विचारसे रहित होते हैं ।।६।।
इस प्रकारसे मैंने विचारहीन आम्रघाती पुरुषकी सूचना की है। अब इस समय क्षीरपुरुषके स्वरूपको कहता हूँ, उसे सावधानतासे सुनिए ॥६२।।
छोहार देशमें समुद्र सम्बन्धी वृत्तान्तका जानकार (अथवा सामुद्रिक शास्त्रका वेत्ता) एक प्रसिद्ध सागरदत्त नामका वैश्य था । वह जलयात्रामें तत्पर हुआ ॥६३॥
एक समय वह जहाजपर चढ़कर नक्र, मगर और ग्राह आदि जल-जन्तुओंसे व्याप्त समुद्रको पार करके चौल द्वीपमें पहुंचा ॥६४।।
जाते समय वह अपने साथ जिनवाणीके समान सुखप्रद एक दूध देनेवाली कामधेनु (गाय) को ले गया ॥६५।।
वहाँ जाकर व्यवहारमें चतुर उस सागरदत्त वैश्यने भेंटको आगे रखते हुए उक्त द्वीपके स्वामी तोमर राजाका दर्शन किया ।।६६।।
दूसरे दिन उक्त वैश्यने अमृतके समान स्वादिष्ट और शरीरमें कान्तिको देनेवाली खीरको ले जाकर उस तोमर राजासे भेंट की ॥६॥
६१) अ परैः । ६२) अ ब विचारणः । ५३) अ ब चोहारविषये; अ ख्यातः । ६४) अ ब चोचवीपं । ६५) क इ पटीयसा। ६७) अ वीक्ष्यतस्तेन; इ वितारिणीम् ।
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