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धर्मपरीक्षा-९ बोडे रक्षतु' ते पादं त्वदीया जननी स्वयम् । रुष्टया निगद्येति पादो भग्नो द्वितीयकः ॥३३ ताभ्यां चकितचित्तो ऽहं मूकीभूय व्यवस्थितः। व्याघ्रीभ्यामिव रुष्टाभ्यां छागः कम्पितविग्रहः ॥३४ यतो भार्याविभीतेने पादभङ्गो ऽप्युपेक्षितः। कुण्टहंसगति म मम जातं ततस्तदा ॥३५ मम पश्यत मूर्खत्वं तदा यो ऽहं व्यवस्थितः । स्थितो वाचंयमीभूय कान्ताभीतिकरालितः ॥३६ दुःशीलानां विरूपाणां योषितामस्ति यादृशः । सौभाग्यरूपसौन्दर्यगर्वः कुकुलजन्मनाम् ॥३७ सुशीलानां सुरूपाणां कुलीनानामनेनसाम्। नेदृशो जायते स्त्रीणां धार्मिकाणां कदाचन ॥३८
३३) १. राखो। ३५) १. मया । २. मौनेन स्थितः । ३६) १. पीडितः। ३७) १. रमणीयता। ३८) १. पापरहितानाम् । २. गर्वः ।
अन्तमें अतिशय क्रोधको प्राप्त होती हुई खरी बोली कि ले अब तेरे उस पाँवकी रक्षा तेरी माँ आकर कर ले, ऐसा कहते हुए उसने दूसरे पाँवको तोड़ डाला ॥३३।।
जिस प्रकार क्रुद्ध हुई दो व्याघ्रियोंके मध्यमें बकरा भयसे काँपता हुआ स्थित रहता है उसी प्रकार मैं भी क्रुद्ध हुई उन दोनों स्त्रियोंके इस दुर्व्यवहारसे मनमें आश्चर्यचकित होता हुआ चुपचाप स्थित रहा ॥३४।।
चूंकि मैंने स्त्रियोंसे भयभीत होकर अपने पाँवके संयोगकी भी उपेक्षा की थी, इसीलिए तबसे मेरा नाम कुण्ठहंसगति (हाथरहित-पंखहीन-हंस-जैसी अवस्थावाला, अथवा कुण्ठअकर्मण्य हंसके समान ) प्रसिद्ध हो गया है ॥३५।।
उस मेरी मूर्खताको देखो जो मैं स्त्रियोंके भयसे पीड़ित होकर मौनका आलम्बन लेता हुआ स्थित रहा ॥३६॥
दुष्ट स्वभाववाली, कुरूप व निन्द्य कुलमें उत्पन्न हुई स्त्रियोंको अपने सौभाग्य, रूप और सुन्दरताका जैसा अभिमान होता है वैसा अभिमान उत्तम स्वभाववाली, सुन्दर, उच्च कुलमें उत्पन्न हुई व पापाचरणसे रहित धर्मात्मा स्त्रियोंको कभी नहीं होता ॥३७-३८॥
३३) अ रुष्टखर्या । ३४) ड इ द्वाभ्यां; चकित इ दुष्टाभ्यां । ३५) ब नार्या for भार्या ३६) ब तस्य for तदा, ड तयोर्योहं; ब क स्थिरो for स्थितो । ३८) इ स्वरूपाणां; अ इ अनेहसाम् ।
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