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अमितगतिविरचिता रामाभिर्मोहितो जीवो न जानाति हिताहितम् । हताखिलविवेकाभिर्वारुणीभिरिव स्फुटम् ॥७७ कान्तेयं तनुभूरेष सवित्रीयमयं पिता। एषा बुद्धिविमूढानां भवेत् कर्मनियन्त्रिता ॥७८ देहो विघटते यस्मिन्नाजन्मपरिपालितः। निर्वाहः' कीदृशस्तस्मिन् कान्तापुत्रधनाविषु ॥७९ ततो भूतमतिर्मूढः कुद्धस्तं न्यगदीदिति । उपदेशो बुधैयर्थः प्रदत्तो मूढचेतसाम् ॥८० सकलमार्गविचक्षणमानसा हरविरित्रिमुरारिपुरंदरा। विवधते दयितां हृदये कथं यदि भवन्ति विनिन्द्यतमास्तदा ॥८१ स्फुटमशोकपुरःसरपादपाः' परिहरन्ति न यो हतचेतनाः ।
सकलसौख्यनिधानपटीयसीः कथममी पुरुषा वद ताः स्त्रियः ॥८२ ७७) १. क दारुभिः [ मदिराभिः] । ७८) १. कर्मनिष्पादिता; क कर्मबद्धाः। ७९) १. स्थिरत्वम् । ८१) १. क रुद्र-ब्रह्मा-कृष्ण-इन्द्राः । ८२) १. अशोकादिवृक्षाः । २. स्त्रियः। ३. दक्षाः।
जीव जिस प्रकार समस्त विवेकबुद्धिको नष्ट करनेवाली मदिरासे मोहित होकर हित और अहितको नहीं समझता है उसी प्रकार वह उस मदिराके ही समान समस्त विवेकको नष्ट करनेवाली स्त्रियोंसे मोहित होकर हित और अहितको नहीं समझता है, यह स्पष्ट है।।७।।
____ यह स्त्री है, यह पुत्र है, यह माता है, और यह पिता है; इस प्रकारकी बुद्धि कर्मके वश मूोंके हुआ करती है ॥७॥ - जिस संसारमें जन्मसे लेकर पुष्ट किया गया अपना शरीर नष्ट हो जाता है उसमें भला स्त्री, पुत्र और धन आदिके विषयमें निर्वाह कैसा ? अर्थात् जब प्राणीके साथ सदा रहनेवाला यह शरीर भी नष्ट हो जाता है तब भला प्रत्यक्षमें भिन्न दिखनेवाले स्त्री, पुत्र और धन आदि कैसे स्थिर रह सकते हैं ? ॥७९॥
ब्रह्मचारीके इस उपदेशको सुनकर क्रोधको प्राप्त हुआ वह मूर्ख भूतमति इस प्रकार बोला । ठीक है-अविवेकी जनोंको दिया गया उपदेश व्यर्थ हुआ करता है ॥८॥
यदि स्त्रियाँ इस प्रकारसे अतिशय निन्द्य होती तो समस्त मार्गों (प्रवृत्तियों) में विचारशील मनवाले महादेव, ब्रह्मा, विष्णु और इन्द्र उन स्त्रियोंको हृदयमें कैसे धारण करते हैं।।८१।।
जिन स्त्रियोंको जड़ अशोक आदि वृक्ष भी स्पष्टतया नहीं छोड़ते हैं, समस्त सुखके करने में अतिशय चतुर उन स्त्रियोंको भला ये (विचारशील) पुरुष कैसे छोड़ सकते हैं, बतलाओ ॥८२।।
८१) इ हृदये दयितां।
८२) क ड हतमानसाः;
७९ ) व प्रतिपालितः । ८०) अ जायते for बुधैः । अ ब विधान for निधान; अ ड वदतः, ब क वदत ।
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