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अमितगतिविरचिता खलाः सत्यमपि प्रोक्तमादायासत्यबुद्धितः। मुष्टिषोडशकन्यायं रचयन्त्यविचारकाः ॥६ कोदशो ऽसौ' महाबुद्धे ब्रहोति गदिते द्विजैः । उवाचेति मनोवेगः श्रूयतां कथयामि वैः ॥७ देशो मलयदेशो' ऽस्ति संगालो गलितासुखः । तत्र गृहपतेः पुत्रो नाम्ना मधुकरो ऽभवत् ॥८ एकदा जनकस्यासौ निर्गत्य गृहतो रुषा। अभ्रमोद्धरणीपृष्ठं रोषतः क्रियते न किम् ॥९ आभीरविषये तुङ्गा गतेनानेन राशयः। दष्टा विभज्यमानानां चणकानामनेकशः ॥१० तानवेक्ष्य विमुग्धेन तेन विस्मितचेतसा ।
अहो चित्रमहो चित्रं मया दृष्टमितीरितम् ॥११ ७) १. न्याय: । २. क युष्मान् । ८) १. मलयदेशे मृणालग्रामे भ्रमरस्य पुत्रो मधुकरगतिः इति वा पाठः । २. ग्रामे । ३. भ्रमरस्य
पुत्रो मधुकर इति । ९) १. मधुकरगतिः । १०) १. क देशे। ११) १. क कथितम् ।
जो दुष्ट मनुष्य विचारसे रहित ( अविवेकी ) होते हैं वे कही गयी सच बातको भी असत्य बुद्धिसे ग्रहण करके मुष्टिषोडशक (सोलह मुक्केरूप) न्यायकी रचना करते हैं ।।६।।
इसपर हे अतिशय बुद्धिशालिन् ! वह मुष्टिषोडशक न्याय किस प्रकारका है, यह हमें बतलाइए। इस प्रकार उन ब्राह्मणोंके पूछनेपर मनोवेग बोला कि मैं तुम्हें उसे बतलाता हूँ, सुनिए ॥७॥
मलय नामका जो एक देश है उसमें दुःखोंसे रहित एक संगाल नामका ग्राम है। वहाँ एक गृहपति (सदा अन्नादिका दान करनेवाला-सत्री) रहता था। उसके मधुकर नामका एक पुत्र था ॥८॥
___एक समय वह पिताके ऊपर रुष्ट होकर घरसे निकला और पृथिवीपर घूमने लगा। ठीक है-क्रोधके वश होकर मनुष्य क्या नहीं करता है ? अर्थात् क्रोधके वशमें होकर मनुष्य नहीं करने योग्य कार्यको भी किया करता है ।।९।।
इस प्रकार घूमता हुआ वह आभीर देशमें पहुँचा। वहाँपर उसने अलग-अलग विभक्त किये हुए चनोंकी अनेक ऊँची-ऊँची राशियाँ देखीं ॥१०॥
उनको देखकर उस मूर्खने आश्चर्यसे चकित होकर कहा कि अरे ! मैंने बहुत आश्चर्यजनक बात देखी है ॥११॥
६) अ इ षोडशकं न्यायं । ७) अ ते for वः। ८) ड मालवदेशो'; अ संगाले....सुखे, क मंगलो। ९) इ बम्भ्रमी'; ड पृष्ठे। ११) अ विमुखेन; अ दृष्टमतीकृतम्; ब °मित्ती चिरं ।
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