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धर्मपरीक्षा-४ विभागेन कृतास्तेन देशं संगालमीयुषा । मरीचिराशयो दृष्टास्तुल्याश्वणकराशिभिः ॥२४ तत्र तेन तदेवोक्तं लब्धो दण्डो ऽपि पूर्वकः । बालिशो जायते प्रायः खण्डितोऽपि न पण्डितः ॥२५ मुष्टिषोडशकं प्राप्तं यतः सत्ये ऽपि भाषिते। मुष्टिषोडशकन्यायः प्रसिद्धिमगमत्ततः ॥२६ न सत्यमपि वक्तव्यं पुंसा' साक्षिविजितम् । परैव्यापीडयते लोकैरसत्यस्येव भाषकाः ॥२७ असत्यमपि मन्यन्ते लोकाः सत्यं ससाक्षिकम् । वञ्चकैः सकलो लोको वञ्च्यते कथमन्यथा ॥२८ पुंसा सत्यमसत्यं वा वाच्यं लोकप्रतीतिकम् । भवन्तो महती पीडा परथा केन वार्यते ॥२९
२४) १. गतेन तेन । २५) १. निपुणः । २६) १. प्राप्तवान् । २७) १. निपुणेन । २८) १. धूर्तेः।
जब वह (मधुकर ) अपने संगाल देशमें वापस आ रहा था तब उसने वहाँ चनोंकी राशियोंके समान विभक्त की गयी मिरचोंकी राशियोंको देखा ॥२४॥
तब उसने वहाँपर भी वही बात ( जैसी यहाँ मिरचोंकी राशियाँ हैं वैसी आभीर देशमें मैंने चनोंकी राशियाँ देखी हैं ) कही और वही पूर्वका दण्ड (आठ मुक्के) भी प्राप्त किया। ठीक है-मूर्ख मनुष्य कष्टको पाकर भी चतुर नहीं होता ।।२५।।
इस प्रकार सत्य बोलनेपर भी चूँकि मधुकरको सोलह मुक्कोंस्वरूप दण्ड सहना पड़ा इसीलिए तबसे 'मुष्टिषोडशन्याय' प्रसिद्धिको प्राप्त हुआ ।।२६।।
पुरुपको साक्षीके बिना सत्य भाषण भी नहीं करना चाहिए, अन्यथा उसको असत्यभाषीके समान दूसरोंके द्वारा पीड़ा सहनी पड़ती है ॥२७॥
साक्षीके रहनेपर लोग असत्यको भी सत्य मानते हैं, नहीं तो फिर धूर्त लोग सब जनोंको धोखा कैसे दे सकते हैं ? नहीं दे सकते ॥२८॥
इसलिए पुरुपको चाहे वह सत्य हो और चाहे असत्य हो, ऐसा वचन बोलना चाहिए जिसपर कि लोग विश्वास कर सकें। क्योंकि, नहीं तो फिर आगे होनेवाले महान् कष्टको कौन रोक सकता है ? कोई भी नहीं रोक सकेगा ॥२९।।
२४) इ 24 after 25; ब सांगाल, क मंगाल, ड मंगल; अब मरीच । २५) ड तेन तत्र; अ इ दण्डश्च । २७) अ परतः पीड्यते, ब परथा पीड्यते, इ परं व्या'; इ 'रसत्यस्यैव । २९) ब पुंसां; अ परघातेन वार्यते ।
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