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अमितगतिविरचिता पुंसा सत्यमपि प्रोक्तं प्रपद्यन्ते न बालिशाः। यतस्ततो न वक्तव्यं तन्मध्ये हितमिच्छता ॥३० अनुभूतं श्रुतं दृष्टं प्रसिद्धं च प्रपद्यते। अपरं न यतो लोको न वाच्यं पटुना ततः ॥३१ ममापि निविचाराणां मध्ये ऽत्र वदतो' यतः । ईदृशो जायते दोषो न वदामि ततः स्फुटम् ॥३२ विचारयति यः कश्चित् पूर्वापरविचारकः । उच्यते पुरतस्तस्य न परस्य पटोयसा ॥३३ इत्युक्त्वावसिते' खेटे जगाद द्विजपुंगवः।। मैवं साधो गदीर्नास्ति कश्चिदत्राविवेचकः॥३४
३०) १. मन्यन्ते । २. अज्ञानिमध्ये। ३२) १. वचनस्य मम मनोवेगस्य । ३३) १. विभाषितम् । २. न कथ्यते । ३. अविचारकस्य । ३४) १. स्थितवति, मौने कृते सति ; क उक्त्वा स्थिते सति । २. क सभायाम् ।
पुरुष यदि सत्य बात भी कहता है तो भी मूर्खजन उसे नहीं मानते हैं। इसलिए विचारशील मनुष्यको अपने हितकी इच्छासे मूल्के मध्यमें सत्य बात भी नहीं कहना चाहिए ॥३०॥
लोकमें जो बात अनुभवमें आ चुकी है, सुनी गयी है, देखी गयी है या प्रसिद्ध हो चुकी है उसीको मनुष्य स्वीकार करता है ; इसके विपरीत वह अननुभूत, अश्रुत, अदृष्ट या अप्रसिद्ध बातको स्वीकार नहीं करता है। इसीलिए चतुर पुरुषको ऐसी ( अननुभूत आदि) बात नहीं कहना चाहिए ॥३१।।
यहाँ विचारहीन मनुष्यों के बीचमें बोलते हुए चूंकि मेरे सामने भी वही दोष उत्पन्न हो सकता है, इसीलिए मैं यहाँ स्पष्ट बात नहीं कहना चाहता हूँ ॥३२॥
पूर्वापरका विचार करनेवाला जो कोई मनुष्य दूसरेके कहे हुए वचनपर विचार करता है उसके आगे ही चतुर पुरुष बोलता है, अन्य (अविचारक ) के आगे वह नहीं बोलता ॥३३॥
इस प्रकार कहकर मनोवेगके चुप हो जानेपर ब्राह्मणोंमें प्रमुख वह विद्वान् बोला कि हे सज्जन ! ऐसा मत कहो, क्योंकि इस देशमें अविवेकी कोई नहीं है-सब ही विचारक हैं ॥३४॥
३१) अ च for न; अ क लोके। ३४) अ ऽगदीन्नास्ति देशे ऽत्राप्यविवेचकः; इदत्ताविचारकः ।
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