Book Title: Aradhanasar
Author(s): Devsen Acharya, Ratnakirtidev, Suparshvamati Mataji
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
View full book text
________________
• 30 •
कुन्दाचार्य ने सल्लेखना को श्रावक के चार शिक्षाव्रतों में सम्मिलित किया है, जिसका अभिप्राय यह है कि श्रावकों को सदा ऐसी भावना रखनी चाहिए कि मेरा समाधिमरण हो । उमास्वामी, समन्तभद्राचार्य ने शिक्षाव्रत से पृथक् समाधिमरण को व्रतों का फल कहा है अतः अन्त में समाधिमरण को 'मारणांतिक सल्लेखनां जोषिता' कहकर व्रती मनुष्यों को आज्ञा दी है कि मरणान्त काल में होने वाली सल्लेखना अवश्य ही प्रीतिपूर्वक धारण करनी चाहिए ।
समाधिमरण की प्राप्ति व्रती सम्यग्दृष्टि को ही हो सकती है? समाधिमरण से ही कर्मों का क्षय हो सकता है और कर्मों का क्षय होने से शाश्वत सुख की प्राप्ति होती है ।
भगवती आराधना में लिखा है कि जो जीव एक भव में समाधिपूर्वक मरण प्राप्त कर लेता है वह सात आठ भवों से अधिक संसार में नहीं भटकता। आराधनासार में उत्तम, मध्यम और जघन्य आराधना का फल बताते हुए कहा है कि आराधना का उत्तम फल काललब्धि को प्राप्त कर मुक्तिपद को प्राप्त करना हैं । मध्यफल सर्वार्थसिद्धि अहमिन्द्रपद, स्वर्ग-सम्पदा की प्राप्ति और दूसरे भव में मुक्ति प्राप्त होना है। आराधना का जघन्य फल है सात-आठ भव में निर्वाणपद प्राप्त होना । इस प्रकार समाधिमरण की उपादेयता बतलाने वाले अनेक ग्रन्थ हैं। भगवती आराधना भूलाराधना तो इसका मुख्य ग्रन्थ है। प्रसंगवश अन्य ग्रन्थों में 'सल्लेखना की चर्चा की गई है।
इन्हीं आराधनाओं का सरस और सरल कथन देवसेन आचार्य ने आराधनासार में किया है।
सर्वप्रथम ग्रन्थ के प्रारंभ में आचार्यदेव ने मंगलाचरण करके सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र और सम्यक्तप इन चारों आराधनाओं का स्वरूप व्यवहार और निश्चय से बतलाकर व्यवहार आराधनाओं को कारण और निश्चय आराधनाओं को उनका कार्य कहा है। तथा यह भी लिखा है कि क्षपक इन आराधनाओं के कारण कार्यविभाग को जानकर तथा काल आदि लब्धियों को प्राप्त कर इस प्रकार आराधना करे जिससे वह संसार से मुक्त हो जावे । व्यवहाराराधना बाह्य कारण है और निश्चयाराधना अंतरंग कारण है। इन दोनों कारणों के मिलने पर ही कार्य सिद्ध होते हैं। पृथक् पृथक् एक कारण से कार्यसिद्धि संभव नहीं है। इसके लिए संस्कृत टीकाकार ने एक श्लोक उद्धृत किया है
कारणद्वयसाध्यं न कार्यमेकेन जायते ।
द्वन्द्वोत्पाद्यमपत्यं किमेकेनोत्पद्यते क्वचित् ॥
दो कारणों से सिद्ध होने वाला कार्य क्या एक कारण से सिद्ध होता है? जैसे कि स्त्री-पुरुष दोनों से उत्पन्न होने वाली संतान क्या कहीं एक से उत्पन्न हो सकती है ?
इस प्रकार प्रारंभ की १६ गाथाओं में चार आराधनाओं की संक्षिप्त चर्चा कर मरण के समय आराधना करने वाला कौन हो सकता है, इसकी विशद चर्चा की हैं। उन्होंने कहा है कि जिसने कषायों