Book Title: Aradhanasar
Author(s): Devsen Acharya, Ratnakirtidev, Suparshvamati Mataji
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
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आराथनासार -५९
णाणसंपण्णो ज्ञानसंपन्नः शुद्धपरमात्मपदार्थविलक्षणानि परद्रव्याणि हेयरूपाणि जानाति समस्तदेहादिपरद्रव्येभ्यो विविक्तं परमात्मनः स्वरूपमुपादेयं मनुते इति स्वसंवेदनज्ञानसंपन्नः । पुनः कथंभूतः । दुविहपरिग्गचत्तो द्विविधपरिग्रहत्यक्तः द्विविधेन बाह्याभ्यंतरलक्षणपरिग्रहेण त्यक्तो रहितः। क्व। मरणे मरणपर्यन्तं अत्र अभिन्याप्यार्थे सप्तमी निर्दिष्टा तिलेषु तैलबत्। कथं । हु खलु निश्चयेन एवंगुणविशिष्टः पुरुषो मरण-कालपर्यन्तमारराधको भवतीति तात्पर्यार्थः ॥१७॥ नन्वाराधकपुरुषस्येमान्येव लक्षणानि किमन्यान्यपि भविष्यति वा इति पृष्टे अपराण्यपि संतीत्याह
संसारसुहविरत्तो वेरगं परमउवसमं पत्तो। विविहतवतवियदेहो मरणे आराहओ एसो॥१८॥
संसारसुखविरक्तो वैराग्यं परमोपशमं प्राप्तः ।
विविधतपस्तप्तदेहो मरणे आराधक एषः ॥१८ ।। अन क्रियाया अध्याहारः। भर्वाते । कोसौ आराहओ आराधकः। कः। एसो एषः । किं लक्षणः । संसारसुहविरत्तो संसारसुखविरक्तः संसारे यानि निर्मलचिदानंदानुभवनोत्थानुपमानिंद्रियसुखविलक्षणानि केवलमाकुलत्वोत्पादकत्वाद्दुःखरूपाणि इंद्रियविषयोत्पादितसुखानि तेषु विरक्तः अभिलाषरहितः। पुनः
दूसरा लक्षण है कि वह सम्यग्दर्शन से युक्त हो क्योंकि सम्यग्दर्शन के बिना स्वरूप का भान नहीं होता है और ज्ञान सम्यग्ज्ञान नहीं होता है।
तीसरा लक्षण है कि वह ज्ञानसम्पन्न शुद्ध परमात्म-पदार्थ से विलक्षण समस्त पर द्रव्य को हेय समझता हो। समस्त देहादि पर द्रव्य से भिन्न परमात्म स्वरूप शुद्धात्मा को उपादेय भानता हो और स्वसंवेदन ज्ञान से सम्पन्न
चतुर्ध लक्षण है-दस प्रकार के बाह्य और १४ प्रकार के अभ्यन्तर रूप इन दोनों परिग्रहों का त्यागी हो। ऐसा भव्य जीव मरण के समय आराधक (क्षपक) होता है। अर्थात् निश्चय से उपर्युक्त गुण विशिष्ट पुरुष हो भरणकाल पर्यन्त आराधक होता है, ऐसा समझना चाहिए ।।१७।।
__ आराधक पुरुष के इतने ही लक्षण हैं कि और भी कोई हैं? ऐसा पूछने पर आचार्य अन्य लक्षणों का कथन करते हैं
जो संसार-सुख से विरक्त है, परम वैराग्य और उपशम भाव को प्राप्त है और जिसने विविध तपों से अपने शरीर को तपाया है, ऐसा भव्य प्राणी ही मरण काल में आराधक होता है ॥१८॥
इस गाथा में "होता है" यह क्रिया ऊपर से लेनी चाहिए।
निर्मल चिदानन्द शुद्धात्मा के अनुभव से उत्पन्न अनुपम अतीन्द्रिय सुख से विलक्षण आकुलता उत्पादक होने से वास्तव में दुःख रूप, इन्द्रियविषयों से उत्पन्न संसार-सुख से विरक्त पुरुष आराधक होता है। अर्थात् इन्द्रियसुख का अभिलाषी आराधना का आराधक नहीं होता।