Book Title: Aradhanasar
Author(s): Devsen Acharya, Ratnakirtidev, Suparshvamati Mataji
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
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आराधनामार - १७४
हवइ भवति जायते । कोसौ । विणासो विनाशो विलयः । केषां । सव्वाणं सकम्पाणं सर्वेषां मूलोत्तरप्रकृतिभेदभिन्नानां स्वकर्मणां ज्ञानावरणादीनां । कस्य कर्मणां विनाशो भवतीत्याह । झाणिस्स ध्यानिनो योगिनः । कथम्भूतस्य योगिनः । इयएरिसम्मि सुण्णे झाणे वट्टमाणस्स इति प्रागुक्तप्रकारेण एतादृशे शून्ये ध्याने निर्विकल्पसमाधिलक्षणे प्रवर्तमानस्य । एतादृशे ध्याने प्रतिष्ठितस्य योगिनः कर्मक्षयो भवतीति निःसंशयः । तथाहि योगिनोऽयं योगकल्पतरुत्रछितं फलं तदा फलति यदा मनोगजेन नोत्पाटितो भवेत् । यदुक्तं
चित्तमत्तकारिणा नचेद्धतो दुष्टबोधवनवह्निनाऽथवा । योगकल्पतरुरेष निश्चितं वांछितं फलति मोक्षमत्फलम् ॥
ततोवश्यं योगिना मनोगजाद्योगकल्पतरुर्यत्नेन रक्षणीय इति भावार्थः ॥ ८६ ॥ निःशेषकविनाशे सति कीदृश फल भवतात्या वेदयति
णीसेसकम्मणासे पथडेइ अनंतणाणचउखधं ।
अण्णेवि गुणा य तहा झाणस्स ण दुल्लहं किंपि ॥ ८७ ॥ निःशेषकर्मनाशे प्रकटयत्यनंतज्ञानचतुः स्कंधं ।
अन्येपि गुणाश्च तथा ध्यानस्य न दुर्लभं किंचिदपि ॥ ८७ ॥
इस प्रकार उपर्युक्त निर्विकल्प समाधिलक्षण शून्य ध्यान में स्थित (प्रतिष्ठित ) योगी के, क्षपक के स्वकीय रागद्वेष भावों से उपार्जित मूल उत्तर प्रकृति से भिन्न ( वा द्रव्य भाव रूप) सर्व कर्मों का विनाश हो जाता है; इसमें संशय नहीं है।
तथाहि, योगियों के यह योग रूपी कल्पवृक्ष तब मनोवांछित फल देता है जब मन रूपी हाथी के द्वारा योग रूपी कल्पवृक्ष उखाड़ा नहीं जाता है। सो ही कहा है
“यदि मनरूपी मदोन्मत्त हाथी के द्वारा अथवा दुष्ट ( मिथ्या) ज्ञान रूपी वन अनि के द्वारा यह योग रूपी कल्पवृक्ष नष्ट नहीं किया गया है, नहीं जलाया गया है तो निश्चय से यह योग रूपी (संन्यास रूपी) वृक्ष वांछित मोक्ष रूपी महाफल देता है।"
इसलिए योगिजनों को मन रूपी हाथी से यत्नपूर्वक योगरूप कल्पवृक्ष की रक्षा करनी चाहिए। अर्थात् संयम रूपी कल्पवृक्ष के विनाशक मन रूपी हाथी को वश में करना चाहिए ॥ ८६ ॥
सम्पूर्ण कर्मों का नाश हो जाने पर क्या फल प्राप्त होता है? उसका कथन करते हैं
"शून्य ध्यान के द्वारा सारे कर्मों का नाश हो जाने पर अनन्त ज्ञानादि चतुःस्कन्ध और अन्य भी गुण प्रकट होते हैं, क्योंकि ध्यान से कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं है अर्थात् ध्यान के द्वारा सर्व मनोवांछित वस्तुएँ प्राप्त हो जाती हैं ॥ ८७ ॥