Book Title: Aradhanasar
Author(s): Devsen Acharya, Ratnakirtidev, Suparshvamati Mataji
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan

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Page 238
________________ आराधनासार २०३ सिज्झति सिध्यति । के । भविया भव्याः आसन्नभव्या । कदा | तस्मिन् भवे तस्मिन्नेव भवांतरे वर्तमानशरीराधिष्ठाना भव्यात्मनः सिद्धिं साधयतीत्यर्थः । किं कृत्वा । कालाई लहिऊणं कालादिकं लब्ध्वा द्रव्यक्षेत्रकालभवभावलक्षणां सामग्री प्राप्य ॥ यदुक्तम् योग्योपादानयागेन दृषदः स्वर्णता मता । द्रव्यादिस्वादिसंपत्तावात्मनोप्यात्मता मता । पुनः किं कृत्वा । छित्तूण य अडकम्मसंखलयं छित्वा । कां । अष्ट- कर्मशृंखलां अष्टकर्माण्येवातिदृढत्वात् शृंखला अष्टकर्मशृंखला तां अष्टकर्मशृंखला संतः सिद्ध्यंति केवलणाणपहाणा केवलं च तज्ज्ञानं च केवलज्ञानं तेन प्रधानाः संयुक्ताः एवंभूताः संत: केचित्तस्मिन्नेव भवांतरे निश्चयाराधनामहिम कमलालिंगिता मुक्तिकांतासुखं निर्विशति ॥ १०७ ॥ आराधनाराधका उद्वृत्यपुण्यप्रकृतयः सर्वार्थसिद्धिगामिनो भवतीत्याहआराहिऊण केई चउव्विहाराहणाई जं सारं । उव्वरियसेसपुण्णा सव्वट्टणिवासिणो हुति ॥ १०८ ॥ आराध्य केचित् चतुर्विधाराधनायां यं सारं । उद्वृत्तशेषपुण्याः सर्वार्थनिवासिनो भवन्ति ॥ १०८ ॥ मोक्षप्राप्ति में द्रव्य क्षेत्र, काल भव और भाव ये पाँच कालादिक कहलाते हैं। 'वज्रवृषभनाराच संहनन को द्रव्य कहते हैं। कर्मभूमि क्षेत्र कहलाते हैं । चतुर्थकाल काल है । मानुष भव भव है और निर्विकल्प समाधि भाव है। इन द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव रूप पाँच प्रकार की सामग्री की प्राप्ति को कालादि सामग्री कहते हैं। आसन्नभव्यात्मा कालादि सामग्री को प्राप्त कर चार प्रकार की आराधना के बल से इसी भव में वर्तमान शरीर से ही मोक्ष को प्राप्त हो जाता है । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, भव रूप सामग्री की प्राप्ति मोक्ष में कारण है। पूज्यपाद स्वामी ने इष्टोपदेश में कहा है "जिस प्रकार योग्य ( निमिन) और उपादान के कारण पत्थर (सुवर्ण पाषाण) सुवर्ण बन जाता है, उसी प्रकार द्रव्यादि (द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव), स्वादि (स्वकीय भाव) संपत्ति को प्राप्त करके आत्मा आत्मता को प्राप्त हो जाता है। इन पाँच प्रकार की सामग्री को प्राप्त कर यह जीव आठ प्रकार की कर्मश्रृंखला को तोड़ देता है और केवल - ज्ञान प्रधान है जिसमें ऐसे गुणों को प्राप्त कर उसी भव में अथवा दो-तीन भव में मोक्ष में चला जाता है, सिद्ध हो जाता है । निश्चय आराधना रूप गौरवपूर्ण कमला (लक्ष्मी) से आलिंगित मुक्तिकांता के सुख को प्राप्त होते हैं || १०७ ॥ आराधना के आराधक महान पुण्य प्रकृति बाँधकर सर्वार्थसिद्धिगामी होते हैं। सी कहते हैं कोई भव्य चार प्रकार की आराधना के सार का आराधन करके शेष पुण्य के फल स्वरूप सर्वार्थसिद्धि को प्राप्त होते हैं ।। १०८ ।।

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