Book Title: Aradhanasar
Author(s): Devsen Acharya, Ratnakirtidev, Suparshvamati Mataji
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan

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Page 246
________________ आराधनासार - २११ अमुणियतच्चेण इमं भणियं जं किंपि देवसेणेण । सोहंतु तं मुणिंदा अस्थि हु जइ पवयणविरुद्धम् ।।११५।। अज्ञाततत्त्वेनेदं भणितं यत्किंचिद्देवसेनेन । शोधयंतु तं मुनीन्द्रा अस्ति हि यदि प्रवचनविरुद्धम् ।।११५ ।। शोधयंतु तं मुनींद्राः भावद्रव्यश्रुतकेवलिन: अंत:स्वसंवेदनज्ञानसंयुक्ताः बहिादशांगश्रुतरहस्यकोविदाः । किं तत्। तं । तत् किं । भणियं जं किंपि यत्किंचित् भणित निगदित इमं इदं प्रत्यक्षीभूतमाराधनासाराख्यं शास्त्रं । केन भणितं। देवसेनेन देवसेनाख्येनाचार्येण । कथंभूतेन। अमुणियतच्चेण अज्ञात तत्त्व येन स अज्ञाततत्त्वस्तेन अज्ञाततत्त्वेन। गर्वपरिहारार्थमिदं विशेषणं न पुनरज्ञाततत्त्व आचार्यः, ततः प्राचीनसूरयो नितरां गुणिनोपि विगताहंकारा; श्रूयते । यदुक्तम् सत्यं वाचि मतौ श्रुतं हृदि दया शौर्य भुजे विक्रमे लक्ष्मीनिमनूनमर्थिनिचये मार्गे गतौ निर्वृतः । येषां समानीह तेपि निरहंकारा शुतोचरा. श्चित्रं संप्रति लेशतोपि न गुणस्तेषां तथाप्युद्धताः ।। यदि अज्ञात-तत्त्व वाले देवसेन ने, इसमें कुछ भी आगमविरुद्ध कथन किया हो तो मुनीन्द्र (ज्ञानीजन) मेरे इस ग्रन्थ की शोधना करें॥११५।।। अज्ञानी देवसेन आचार्य ने प्रत्यक्षीभूत इस आराधनासार ग्रन्थ की रचना की है, इसमें किंचित् भी आगमविरुद्ध कथन हो तो अंतरंग में स्वसंवेदन ज्ञान से युक्त और बाह्य में द्वादशांग श्रुत के रहस्य को जानने में पण्डित, भाव-द्रव्य श्रुतकेवलो मुनिराज इस ग्रन्थ की शोधना करें क्योंकि श्रुतकेवली ही इस कार्य को कर सकते हैं। इस ग्रन्थ में आचार्यदेव ने जो अपने आप को अज्ञाततत्त्व कहा है यह विशेषण केवल स्वकीय गर्व का परिहार करने के लिए है क्योंकि देवसेन अज्ञाततत्त्व नहीं थे, वे छन्द-अलंकार सब जानते थे। प्राचीन आचार्य अत्यन्त गुणी होते हुए भी बिगत-अहंकार होते थे, ऐसा ग्रन्थों में सुना जाता है। आत्मानुशासन में गुणभद्र आचार्य ने लिखा है कि पूर्व काल में वचनों में सत्यता, बुद्धि में श्रुत, हृदय में दया, पराक्रमी भुजा में शूरता, अर्थिनिचय (अर्थ के इच्छुक) को अनून (अति अधिक) लक्ष्मी का दान और मोक्षमार्ग में गमन जैसे गुण होने पर भी वे इस लोक में निरंहकार थे, अहंकार ने उनका स्पर्श नहीं किया था। ऐसा श्रुतिगोचर है, ग्रन्थों में ऐसा कथन है। परन्तु वर्तमान में जिनके लेशमात्र भी गुण नहीं हैं फिर भी चे अति अहंकारी हैं, गर्व से उन्मत्त हो रहे हैं।"

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