Book Title: Aradhanasar
Author(s): Devsen Acharya, Ratnakirtidev, Suparshvamati Mataji
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
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आराधनासार - १०३
भावयन् स पर ब्रह्म छित्त्वा दुःकर्मसंचयम् ।
केवलज्ञानमासाद्य बभूवे मोक्षमक्षयम् ॥ इति शिवभूतिकथा। अथ तिर्यक्कृत उपसर्ग उभाभ्यां सोढस्तमाख्याति।
तिरियंचकओ तिर्यक्कृतः तिर्यग्भिः व्याघ्रसिंहशूकरसर्पसैरिभसौरभेयशृगालादिभिः कृत उपसर्गः तिर्यक्कृतः सोढः। काभ्यां सुकुमाल-कोसलेहि सुकुमालकोशलाभ्यां सुकुमालश्च कोशलश्च सुकुमालकोशलौ ताभ्यां सुकुमालकोशलाभ्यां। कथंभूत उपसर्गः। महाभीमः अतिशयेन भयानकः । सुकुमालकोशलाभ्यां तिर्यक्कृत उपसर्गः सोढः । कथं सोढस्तदनयोः कथा। अथ जंबूद्वीपस्य भारते कौशांबीनगर्या विनमन्नरपालमौलि-मालाशोणमणिकिरणकाश्मीरपूरातुरंगजितचरणकमलोऽतिबलो नाम राजाभूत्। तत्पुरोधाः राजसदसि प्राप्तप्रतिष्ठश्चतुर्वेदाभिज्ञः व्याकरणप्रमाणकवितारत्नरत्नाकर: विष्णुभक्तितत्पर; प्रतिदिनमाचरितषट्कर्मा सोमशर्मा नाम तत्पत्नी काश्यपी तत्पुत्रावुभौ अग्निभूतिमरुभूतिनामानौ। अथैकदा द्विजन्मा पुत्रद्वयं प्रत्याह, रे सुतौ श्रुताभ्यास भवंतौ तनुतं । यदुक्तम्
शिवभूति महामुनि अनन्त ज्ञानमय अखण्ड अविनाशी शुद्धात्मा की भावना से दुष्कर्मों के संचय का नाश कर अविनाशी केवलज्ञान को प्राप्त कर मोक्ष को प्राप्त हो गये। अचेतन कृत उपसर्ग को सहन करने वाले शिवभूति मुनिराज की कथा समाप्त हुई।
हे क्षपक ! इस प्रकार शिवभूति मुनिराज का चिंतन कर धैर्यशाली बनो। घोरोपसर्ग आने पर भी निज स्वभाव से च्युत मत होवो? स्वकीय निजानन्द रस का पान कर अनन्त सुख का अनुभव करो।
___व्याघ्र, सिंह, शूकर, सर्प, कुत्ता, बैल, शृगाल आदि द्वारा किया हुआ उपसर्ग तिर्यंचकृत उपसर्ग कहलाता है। तिर्यंचकृत उपसर्ग को सहन करने वाले मुनि सुकुमाल और सुकोशल की कथा कहते हैं
सुकुमाल और सुकोशल मुनिराज ने तिर्यञ्चकृत घोर उपसर्ग सहन किया। आत्मध्यान में लीन होकर घोर दुःख आने पर भी वे अपने स्वभाव से च्युत नहीं हुए।
* सुकुमाल की कथा * जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र की कौशाम्बी नगरी में एक अतिबल नामक राजा राज्य करता था, जो पराक्रमी था, बड़े-बड़े राजा जिसके चरणों में झुके रहते थे। हाथी-घोड़ों आदि की विशाल सेना उसके चरणों की सेवा करती थी।
उस राजा की राजसभा में चारों वेदों का ज्ञाता, व्याकरण-छन्द-कविता का सागर, विष्णुभक्ति में तत्पर प्रतिदिन षट्कर्म का आचरण करने वाला और महान् प्रतिष्ठाप्राप्त सोमशर्मा नामक राजपुरोहित रहता था। उसके काश्यपी नामक पत्नी थी और अग्निभूति एवं मरुभूति (वायुभूति) नामक दो पुत्र थे।
एक दिन राजपुरोहित ने अपने दोनों पुत्रों को बुलाकर कहा- हे पुत्रो ! आप दोनों श्रुत का अभ्यास करो। सो ही कहा है