Book Title: Aradhanasar
Author(s): Devsen Acharya, Ratnakirtidev, Suparshvamati Mataji
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan

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Page 180
________________ आराथनासार-१४५ ये तु पुरुषा मनसो निवारणं न कुर्वन्ति ते कथंभूता भवतीत्याह मणकरहो धावंतो णाणवरत्ताइ जेहिं ण हु बद्धो। ते पुरिसा संसारे हिंडंति दुहाई भुंजंता॥६२ ।। मनःकरभः धान्जानवनगा यै खल्ल बाहः। ते पुरुषा; संसारे हिंडन्ते दुःखानि भुजतः ।।६२॥ मणकरहो मनःकरभः मन एव करभ उष्ट्र: पाठान्तरेण कलभः करिशावको वा धावंतो धावन् प्रसरन् सन् जेहिं यैः पुरुषैः णाणवरत्ताइ ज्ञानवरत्रया बोधरज्जुरूपया ण बद्धो न बद्ध: न संकोचितः ते पुरिसा ते पुरुषाः संसारे आजवंजवे द्रव्यक्षेत्रकालभवभावलक्षणे दुहाई दुःखानि व्याकुलत्वोत्पादकलक्षणानि भुजंता भुंजतः अनुभवंतः हिंडंति हिंडते परिभ्रमंति खलु निश्चयेन । तथाहि-यथा कश्चन करभरक्षायां नियुक्तो गजरक्षणे वा पुरुषः करभं गजं वा राजमंत्रिपुरोहितादीनां नंदनवनं प्रति विध्वंसनाय धावत वरत्रांकुशादिना कृत्वा यदि न निवारयति स तदा नंदनवनविध्वंसनापराधं विलोक्य लोकाचारविचारचतुरचातुरीचमत्कारनी-तिशास्त्रानुसारविलोकितन्यायमार्गेण नरपतिना निगृह्यमाणः कारागाराद्यनेकविधदुःखान्यानुभवति स्वाधिकारक्रियाकूटकारित्वात् । य: कश्चन स्वाधिकारक्रियाकूटं कुरुते जो मानव मन का निरोध नहीं करते हैं, संकल्प-विकल्प नहीं छोड़ते हैं, उनकी दशा कैसी होती है उनका कथन करते हैं विषयवासना में दौड़ते हुए मन रूपी ऊँट को जो ज्ञान रूपी रस्सी से नहीं बाँधते हैं वे पुरुष अनेक दुःखों को भोगते हुए संसार में परिभ्रमण करते हैं ।।६।।1।। आचार्यों ने मन को ऊँट की उपमा दी है वा पाठान्तर में करभ का अर्थ अबोध बच्चा भी है। जो मानव विषयवासना के वन में दौड़ते हुए मन रूपी ऊँट को ज्ञान रूपी रस्सी से नहीं बाँधते हैं; ज्ञान के द्वारा तत्त्व का चिंतन कर विषयों में जाते हुए मन को नहीं रोकते हैं, अपने स्वरूप में स्थिर नहीं करते हैं वे द्रव्य क्षेत्र, काल, भव और भाव रूप (पाँच परिवर्तन रूप) संसार में निश्चय से उत्पन्न होकर आधि-व्याधि रूप अनेक दुःखों को भोगते हुए परिभ्रमण करते हैं। जैसे-हाथी, घोड़े, आदि की रक्षा में नियुक्त किया हुआ कोई पुरुष राजा, मंत्री, पुरोहित आदि के नन्दनवन का विध्वंस करने के लिए दौड़ते हुए हाथी-घोडे आदि पशुओं को अंकुशादि के द्वारा नहीं रोकता है, उन पशुओं से राजादि के बगीचे की रक्षा नहीं करता है तो अपनी अधिकारक्रिया में सावधान न रहने से अपनी क्रिया में कुटिलता करने के कारण वह पुरुष लोकाचार-विचार में चतुर चमत्कारी नीतिशास्र के अनुसार न्यायमार्ग के ज्ञाता राजा के द्वारा निगृहीत होकर कारागार में अनेक दुःखों का अनुभव करता है। जो कोई भी पुरुष अपनी अधिकारक्रिया में कुटिलता करता है, उसे अनेक प्रकार के दु:खों का अनुभव करना पड़ता है, इसमें कोई संशय नहीं है। वैसे ही हे क्षपक ! जो अपनी क्रियाओं में कुटिलता करते हैं, स्वकीय

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