Book Title: Aradhanasar
Author(s): Devsen Acharya, Ratnakirtidev, Suparshvamati Mataji
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
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आराधनासार-८३
तस्माद् ज्ञानिभिः सदा कृषीकरणं भवति तेषु कर्तव्यम् ।
कृषितेषु कषायेषु च श्रमणो ध्याने स्थिरो भवति ।।३८ ।। तम्हा तस्मात कारणात् णाणीहिं ज्ञानिभिः विवेकिभिः तेसु तेषु कषायेषु सया सदा सर्वकालं किसियरणं कृपीकरणं स्वस्वरूपव्यवस्थापनेन परपदार्थप्रवर्तमानपरिणामपूरदूरीकरणं कायव्वं कर्तव्यं करणीय हवइ भवति किसिएसु कृषितेषु संज्वलनतां गतेषु कसाएसु कषायेषु अ च सत्सु झाणे ध्याने परमात्मस्वरूपचिंतायां धर्मशुक्ललक्षणे सवणो श्रमणो भट्टारको महात्मा विवेकी थिरो स्थिरो निश्चलात्मा हवइ भवति कषायकृषीकरणेन ध्यानस्थिरता विधाय परमात्मानं चिंतयेति तात्पर्यम् ।।३८ ।। संन्यस्ताः कषायाः किं न कुर्वन्तीत्याह
सल्लेहिया कसाया करंति मुणिणो ण चित्तसंखोहं। चित्तक्खोहेण विणा पडिवजदि उत्तमं धम्मं ॥३९॥
सल्लेखिता कषायाः कुर्वन्ति मुनेन चित्तसंक्षोभम् ।
चित्तक्षोभेन विना प्रतिपद्यते उत्तम धर्मम् ।।३९।। सलाहया सल्लखिताः सन्यस्साः परित्यक्ताः कसाया कषायाः मुणिणो मुनेर्महात्मन: चित्तसंखोह चित्तसंक्षोभं मनोविक्षेपण करति न कुर्वन्ति चित्तखोहेण विणा चित्तक्षोभेण विना मनोविक्षेपरहितेन उत्तम
विवेकी महात्माओं को स्वस्वरूप में स्थिरता लाने के लिए, आत्मध्यान के द्वारा निरन्तर परपदार्थों में प्रवर्तमान परिणामों को दूर करने के लिए, विभाव भावरूप कषायों को कृश करना चाहिए। क्योंकि कषायों के कृश होने पर वा संज्वलनता को प्राप्त होने पर श्रमण परमात्मा के स्वरूप के चिंतन रूप धर्मध्यान और शुक्लध्यान में स्थिर होता है। अर्थात् वास्तव में, धर्मध्यान संज्वलन कषाय वाले के ही होता है, अन्य कषायवाले के नहीं।
हे क्षपक ! प्रयत्नपूर्वक कषायों को कृशश करके ध्यान की स्थिरता को प्राप्तकर निज शुद्धात्मा का चिन्तन करो वा परमात्मा का ध्यान करो ॥३८॥
कृश हुई कषायें क्या नहीं करतीं, अर्थात् कषायों के कृश होने पर क्या फल प्राप्त होता है? ऐसा प्रश्न करने वाले के प्रति आचार्य कहते हैं
कृशित हुई कषायें मुनिराज (क्षपक) के चित्त को क्षोभित नहीं करती हैं और चित्त के क्षुभित न होने पर श्रमण उत्तम धर्म को प्राप्त होता है ।।३९ ।।
जिसकी कषायें नष्ट हो गई हैं वा कृश होकर संज्वलन कषाय को प्राप्त हो गई हैं उस महात्मा का चित्त किसी भी कारण से क्षोभित नहीं होता है अर्थात् मन को विक्षिा करने वाली कषायों का अभाव हो जाने पर मन का क्षोभ नष्ट हो जाता है। तथा मन के क्षोभ का नाश हो जाने पर (मन के शांत हो जाने पर)