Book Title: Aradhanasar
Author(s): Devsen Acharya, Ratnakirtidev, Suparshvamati Mataji
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
View full book text
________________
आराधनासार-९
भवणालय चालीसा विंतरदेवाण हुँति बत्तीसा।
कप्पामर चउवीसा चंदो सूरो णरो तिरिओ। इति गाथाकथितशतेन्द्रवंदितत्वं । कथं भविष्यति । अयमप्यर्थोऽत्रैवांतर्भवतीति । कथं। रसा पृथ्वी पूर्वोपार्जितविशिष्टपततमागण्य पुण्यकर्मोदयाश्लिष्टनायक प्रतापा जनधनधान्यकनकसमृद्धत्वाच्छोभनविशेषणयुक्ता शोभनरसा सुरसा तस्या इनः स्वामी सुरसेनः, अथवा सर्वराजाधिराजमहाराजमंडलेश्वरमुकुटबद्धमूर्द्धभूतत्वात् शोभनो । रसेनः सुरसेनः सुरसेनेन चक्रवर्तिना वंदितं । सिंह क्षेप्याकः कश शोभना पुप्पेित कलिराशाङ्कलितवनराजिमंडिता वनभूमिरिति सुरसा तस्या इन: सकलवनेचरमृगवृंदनायकत्वात्स्वामी सुरसेनः सिंहस्तेन वंदितं सुरसेनवंदितमिति समर्थनतया मानवेंद्रतिर्यगिंद्रग्रहणसमर्थ इत्येकश्छायार्थः ।। अनेन कायवाग्भ्यां द्रव्यनमस्कारः सूचितो, भावनमस्कार: कथं घटिष्यते। वाचा अर्ह सिद्धप्रमुखपरमेष्ठिस्वरू पशुद्धपरमात्मद्रव्यवस्तुस्तवगुणस्तवनगंभीरोदारार्थविराजमानसकलेशब्रह्मबीज-भूतनानास्तोत्ररूपः। कायेन। पंचांगनत्या प्रणमनरूपो
भवनवासियों के चालीस, व्यंतर देवों के बत्तीस, कल्पवासियों के चौबीस, ज्योतिषियों के सूर्य, चन्द्रमा, मनुष्यों में चक्रवर्ती और तिर्यञ्चों में सिंह ये सौ इन्द्र होते हैं। सुरसेन शब्द से इन सौ इन्द्रों के द्वारा वंदित कहा गया है।
शंका-'सुरसेनवंदित' शब्द का सौ इन्द्रों के द्वारा वंदित यह अर्थ कैसे हो सकता है?
उत्तर-रसा नाम पृथ्वी का है। पूर्वोपार्जित विशिष्ट पुण्य कर्म के उदय से विशिष्ट प्रतापी, जन, धन, धान्य, सुवर्ण से परिपूर्ण शोभन रसा (पृथ्वी) सुरसा कहलाती है और उस शोभन पृथ्वी का 'इन' स्वामी सुरसेन (चक्रवर्ती) कहलाता है।
अथवा, सर्व राजा, अधिराज, महाराज, अर्धमंडलीक, मंडलेश्वर और मुकुटबद्ध राजाओं का शिरोमणि होने से, शोभन रस का स्वामी सुरसेन (चक्रवती) कहलाता है। अतः सुरसेनवंदित का अर्थ चक्रवर्ती के द्वारा वन्दनीय है।
सिंह की अपेक्षा यह अर्थ है- पुष्पित, फलित, शाड्वलित वन से युक्त पृथ्वी सुरसा कहलाती है अर्थात् जो फल-फूल, घास आदि से शोभनीय पृथ्वी है, उसे सुरसा कहते हैं। उस सुरसा (शोभनीय पृथ्वी) का स्वामी सम्पूर्णवनचर मृगों के समूह में नायक होने से सिंह सुरसेन कहलाता है।
अतः सुरसेनवंदित इस पद से मानवेन्द्र और तिर्यगेन्द्र का भी ग्रहण होता है।
प्रश्न-इस शब्द से काय और वचन के द्वारा द्रव्य नमस्कार सूचित किया गया है। अत; भाव नमस्कार कैसे घटित हो सकता है?
उत्तर-वचन के द्वारा अर्हन्त-सिद्ध प्रमुख परमेष्ठी स्वरूप शुद्ध परमात्म द्रव्य वस्तु का स्तवन, तथा उनके गुणों का स्तवन (उनके शरीर का स्तवन द्रव्य स्तवन है और गुणों का स्तवन गुण स्तवन है) तथा गंभीर उदार अर्ध से युक्त सकल परमेश्वर के ब्रह्मबोजभूत नाना स्तोत्र करना वाचनिक द्रव्य नमस्कार है।
कायके द्वारा पंचांग की नति से प्रणमन करना कायिक द्रव्य नमस्कार है। या द्रव्य नमस्कार का लक्षण