Book Title: Aradhanasar
Author(s): Devsen Acharya, Ratnakirtidev, Suparshvamati Mataji
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
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आराधनासार - ४३
लक्षणं । एकस्तावदिद्रियासयमः अन्यः प्राणासं यमः। द्वयोर्लक्षणं निरूप्यते । य: स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुःश्रोत्रलक्षणानां मनसश्च स्पर्शरसगंधवर्णशब्दलक्षणेषु स्वकीयविषयेषु स्वेच्छाप्रचारः स इंद्रियासंयमः कथ्यते। यच्च पृथिव्यप्ते जो -वायुवनस्पति लक्षण - पंचस्थावर11 द्वींद्रियत्रींद्रियचतुरिंद्रियपंचेंद्रियलक्षणत्रसानां च प्रमादचारित्रत्वाज्जीवितव्यपरोपणं स प्राणासंयमः। यदुक्तं
मनसश्चेन्द्रियाणां च यत्स्वस्वार्थे प्रवर्तनम्। यदृच्छयेव तत्तज्ज्ञा इंद्रियासंयम विदुः ।।। स्थावराणां त्रसानां च जीवानां हि प्रमादतः।
जीवितव्यपरोपो य: स प्राणासंयमः स्मृतः ।। तस्य द्विविधासंयमस्य त्यागः परिहार इतियोजनिकाद्वारः। त्रयोदशविधस्य चारित्रय इह भावशुद्ध्याचरणम् द्विविधासंयमत्याग, एषा चारित्राशना भवतीति संपात्रह्मा: । एमासंगा परिहत्य पंचेंद्रियनिरोधसकलप्राणिदयालक्षणे संयमे स्थित्वा त्रयोदशविध चारित्रमाराधनीयमिति भावार्थः ।।
द्वेधासंयमवर्जितं गुरुपदद्वंद्वाजसंसेवनादानं यश्चिनुते त्रयोदशविधं चारित्रमत्यूर्जितम्। भक्त्या स प्रसभं कुकर्मनिचयं भक्त्वा च सम्यक् परब्रह्माराथनमद्भुतोदितचिदानंदं पदं विंदते ।।६।।
___ पाँच इन्द्रिय और मन को अपने-अपने स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, शब्द और चिन्तन में इच्छानुसार प्रवृत्ति करना, इन्द्रियोंको और मन को अपने विषयों से नहीं रोकने को केवली भगवान ने इन्द्रिय असंयम कहा है और प्रमाद के वश हो त्रस एवं स्थावर जीवों का घात करना, उनके प्राणों का व्यपरोपण करना प्राणी असंयम है। इन दोनों प्रकार के असंयम का त्याग करना (संयम को धारण करना)। इस प्रकार भावशुद्धि से तेरह प्रकार के चारित्र को धारण करना और दो प्रकार के असंयम का त्याग करना चारित्र आराधना है।
हे क्षपक्र! आत्मकल्याण करने के लिए तू असंयम का परिहार करके पंचेन्द्रिय-निरोध लक्षण इन्द्रिय संयम और सर्व प्राणियों पर दया करना लक्षण प्राणिसंयम में स्थित होकर तेरह प्रकार के चारित्र की आराधना कर । सो ही कहा है
हे क्षपक ! जो भव्यात्मा दो प्रकार के असंयम का त्याग करके गुरु के चरण-कमल से प्राप्त श्रेष्ठ चारित्र को भक्तिपूर्वक स्वीकार करता है, वह शीघ्र ही कुकर्मों के समूह का नाशकर सम्यक् परम ब्रह्म की आराधना से उत्पन्न चिदानन्द चैतन्य स्वरूप पद को प्राप्त करता है।।६।।