Book Title: Aradhanasar
Author(s): Devsen Acharya, Ratnakirtidev, Suparshvamati Mataji
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
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आराथनासार-५२
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मनु निश्चयाराधनायां सत्यां किमनया व्यवहाराराधनया साध्यमिति वदंतं प्रत्याह
पज्जयणयेण भणिया चउब्विहाराहणा ह जा सुत्ते। सा पुणु कारणभूदा णिच्छयणयदो चउक्कस्स ॥१२॥
पर्यायनयेन भणिता चतुर्विधाराधना हि या सूत्रे।
सा पुन: कारणभूता निश्चयनयतश्चतुष्कस्य ।।१२।। हे क्षपक भणिया भणिता। कासौ। जा आराहणा या आराधना । क्व। सुत्ने सूत्रे परमागमे। केन कारणभूतेन । पज्जयणघेण पर्यायनयेन पर्यायो भेदः स चासौ नयश्च तेन पर्यायनयेन । कथंभूता। चउविहा चतुर्विधा चतस्रो विधाः प्रकारा यस्याः सा चतुर्विधा दर्शनज्ञानचारित्रतपोरूपा | कथं । हु खलु सा पुणु सा पुनः । अत्र पुन:शब्द एवार्थे अव्ययानामनेकार्थत्वात् । तत: सैव आराधना कारणभूदा कारणभूता हेतुरूपा। कस्य। चउक्कस्स चतुष्कस्य आराधनाचकस्य। कहा। णिऋणदो निश्चयनयतः शुद्धनयात् अर्थान् संमीलिते तु निश्चयनयाराधनाचतुष्कस्य। ननु चतुष्कस्य इत्युक्ते आराधनापदं कुतो लभ्यते। प्रसंगत्वात्। अत्र तावदाराधनायाः प्रसंगः पूर्वोक्तत्वात्। तथाहि। कश्चिद्भव्यः प्राथमिकावस्थायां
निश्चय नय की आराधना हो जाने पर व्यवहार नय की आराधना से क्या प्रयोजन है ? ऐसा कहने वालोंके प्रति आचार्य कहते हैं
___ जिनेन्द्रदेव कथित सूत्र में पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा जो व्यवहार आराधना कही है,वह द्रव्यार्थिक नय से कही गई निश्चय आराधना चतुष्क की कारण है ।।१२॥
पर्यायार्थिक नय भेद रूप है, वा व्यवहार नय कारण है वा भेदरूप है और ट्रन्यार्थिक नय निश्चयनय अभेद रूप है वा कार्य है, ऐसा परमागम में कहा है।
इस माथा में जो 'पुणु' शब्द है वह अव्यय है।
शंका - गाथा में निश्चय नय से चार आराधना न कहकर केवल 'चउक्कस्स' शब्द दिया है। इससे चार आराधना कैसे ग्रहण की जाती है?
उत्तर - व्यवहार में भेदरूप कथन है इसलिए चार प्रकार की आराधना कहीं है, परन्तु निश्चय नय से चारों का समुदाय एक ही आराधना है। उसमें ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप का भेद नहीं है अत: एक समुदाय के लिए चतुष्क कह दिया गया है। अथवा शब्दों का अर्थ प्रसंगवश होता है। यहाँ पर आराधना का प्रकरण है अत: चार आराधना का ग्रहण 'चउक्कस्स' शब्द से होता है।
जब कोई भव्यजीव प्राथमिक अवस्था में निश्चय आराधना में स्थिति (स्थिरता) प्राप्त नहीं कर पाता है तब आत्मकल्याण की साधनभूत चार प्रकार की व्यवहार आराधना का अवलम्बन लेता है। पश्चात् व्यवहार आराधना के आश्रय से मन की स्थिरता को प्राप्त कर अभेद रूप निश्चय आराधना का अवलम्बन लेकर अपने आप में रमण करता है। हे आत्मन् ! तू भी व्यवहार आराधना के बल पर निश्चय आराधना