Book Title: Aradhanasar
Author(s): Devsen Acharya, Ratnakirtidev, Suparshvamati Mataji
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
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आसधनासार -३३
तिर्यग्गतौ तिरश्चां पर्याप्नकानामौपशमिकमस्ति तेषां पर्याप्तापर्याप्तकानां तु क्षायिक क्षायोपशमिक चेति द्वितयमस्ति, तिरश्चीनां क्षायिकं नास्ति औपशमिकं क्षायोपशमिक च पर्याप्तकानामेव नापर्याप्तकानां। एवं मनुष्यगतौ मनुष्याणां पर्याप्तापर्याप्तकानां क्षायिक क्षायोपशमिकं चास्ति औपशमिक पर्याप्तकानामेव नापर्याप्तकानां, मानुषीणां तु त्रितयमप्यस्ति पर्याप्तकानामेव नापर्याप्तकानां क्षायिक पुनर्भाववेदेनैव। देवगतौ देवानां पर्याप्तापर्याप्तकानां त्रितयमप्यस्ति औपशमिकमपर्याप्तकानां। कमितिचेत् । चारित्रमोहोपशमेन सहभूतान् प्रति भवनवासिव्यंतरज्योतिष्काणा देवानां देवीनां च सौधर्मशानकल्पवासिनीनां च क्षायिकं नास्ति तेषां पर्याप्तकानामौपशमिकं क्षायोपशमिकं चास्ति । अस्य साधनमपि कथ्यते। साधनं द्विविधमाभ्यंतर बाह्य च ।
तिर्यञ्चों में तिर्यंच गति में पर्याप्त अवस्था में औपशामक, क्षायिक और क्षायोपशमिक ये तीन सम्यग्दर्शन होते हैं। उनके अपर्याप्त अवस्था में क्षायिक और क्षायोपशमिक ये दो सम्यग् दर्शन होते हैं। क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन नरक के समान कृतकृत्यवेदक की अपेक्षा से है क्योंकि सम्यग्दृष्टि नरक और तिर्यंचों में उत्पन्न नहीं होता है।
जिन जीवों ने मिथ्यात्व अवस्था में नरक और तिर्यंच आयुका बंध कर लिया है, उसके बाद परिणामों की विशुद्धि और तीर्थंकर तथा श्रुतकेवली का सान्निध्य पाकर क्षायिक सम्यग्दर्शन वा कृतकृत्य वेदक को प्राप्त हुआ है, ऐसे जीव मरकर भोगभूमिया तिर्यंच और नारकी हो सकते हैं अतः उनके अपर्याप्त अवस्था में क्षायिक
और क्षायोपशमिक दो सम्यग्दर्शन होते हैं, अन्य के नहीं। क्योंकि पूर्व मिथ्यात्व अवस्था में जिन्होंने तिर्यंच वा नरकायुका बंध नहीं किया है ऐसे सम्यग्दृष्टि जीव मरकर तिर्यंच और नरक में उत्पन्न नहीं होते। . तिचिनी के क्षायिक सम्यग्दर्शन नहीं होता अतः उसके अपर्याप्त अवस्था में कोई भी सम्यग्दर्शन नहीं है परन्तु पर्याप्त अवस्था में दो सम्यग्दर्शन होते हैं औपशमिक और क्षायोपशमिक । मनुष्यगति में मनुष्यों के अपर्याप्त अवस्था में दो सम्यग्दर्शन होते हैं, क्षायिक और क्षायोपशमिक। पर्याप्त अवस्था में औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशामिक ये तीन सम्यग्दर्शन होते हैं।
मनुष्यनियों (स्त्रियों) के अपर्याप्त अवस्था में कोई भी सम्यग्दर्शन नहीं है। क्योंकि सम्यग्दृष्टि जीव स्त्री पर्याय में उत्पन्न नहीं होता। पर्याप्त अवस्था में क्षायिक, औपशमिक और क्षायोपशमिक ये तीन सम्यग्दर्शन होते हैं, परन्तु क्षायिक सम्यग्दर्शन भाववेद की अपेक्षा है, द्रव्यवेद की अपेक्षा नहीं। क्योंकि द्रव्यवेद में स्त्रियों के क्षायिक सम्यग्दर्शन नहीं होता।
देवगति में देवों के पर्याप्त और अपर्याप्त दोनों अवस्थाओं में तीनों प्रकार के सम्यग्दर्शन होते हैं। शंका - अपर्याप्त अवस्था में देवों के औपमिक सम्यग्दर्शन कैसे होता है?
उत्तर - चारित्र मोहनीय का उपशमकर उपशम श्रेणी पर आरूढ़ द्वितीयोपशम सम्यग्दर्शन सहित मरकर सर्वार्थसिद्धि आदि देवों में उत्पन्न हो सकते हैं, अत: अंपर्याम अवस्था में औपशमिक सम्यग्दर्शन होता है।
भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी देवों में और सर्व प्रकार की देवांगनाओं में सम्यग्दृष्टि उत्पन्न नहीं होता। इसलिये भवनत्रिक में सौधर्म आदि देवांगनाओं में अपर्याप्त अवस्था में सम्यग्दर्शन नहीं होता। परन्तु पर्याप्त अवस्था में उपशम और क्षायोपशमिक ये दो सम्यक्त्व होते हैं। भवनत्रिक और कल्पवासी देवांगनाओं में क्षायिक सम्यक्त्व नहीं है। इस प्रकार सम्यग्दर्शन आराधना के कथन में सम्यग्दर्शन का निर्देश और स्वामित्व का कथन समाप्त हुआ।