Book Title: Aradhanasar
Author(s): Devsen Acharya, Ratnakirtidev, Suparshvamati Mataji
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
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आराधनासार - ३९
काले विणये उवहाणे बहुमाणे तहेव णिण्हवणे ।
वंजण अत्थे तदुभय णाणाचारो दु अट्टविहो। इति गाथाकथितलक्षणाष्टविनयादिना ज्ञानमाराधनीयमिति भावार्थः ।।
सिद्धांते जिनभाषिते नवलसत्तत्त्वार्थभावाद्भुते, भावं यो विदधीत वाधिगमनं कुर्वीत तस्यानिशं । भक्त्या स प्रसभं कुकर्मनिचयं भक्त्वा च सम्यक्परब्रह्माराधनमद्भुतोदितचिदानंदं पदं विंदते ॥५॥
वाचक (शब्द) वाच्य (अर्थ) दोनों को शुद्ध पढ़ना उभय शुद्ध कहलाता है।
शास्त्र पढ़ने के लिए जो काल निषिद्ध है उसमें शास्त्र नहीं पढ़ना चाहिए, सूर्योदय के दो धड़ी (४८ मिनट) पूर्व और दो घड़ी पश्चात्, मध्याह्न १२ बजे के दो घड़ी पूर्व और दो घटिका पश्चात्, सूर्यास्त के दो घटिका पूर्व और दो घटिका पश्चात् तथा अर्धरात्रि के दो घटिका पूर्व और दो घटिका पश्चात् तक का काल स्वाध्याय के लिए निषिद्ध है। इन कालों को छोड़कर स्वाध्याय करना चाहिए |
___ शास्त्रों का पठन-पाठन विनय से करना चाहिए। अर्थात् हाथ-पैर धोकर चौकी बिछाकर, श्रुत भक्ति और आचार्य-भक्ति बोलकर विधिपूर्वक कायोत्सर्ग करके शास्त्र पढ़ना चाहिए।
बार-बार नमस्कार करके अति भक्ति से शास्त्र पढ़ना बहुमान है। विनय सामान्य है वह वाचनिक और कायिक भी हो सकती है, परन्तु बहुमान विशेष मानसिक अनुराग हैं।
शास्त्रपठन के प्रारम्भ में कुछ नियम धारण करना, हृदय में अर्थ की अवधारणा करना उपधान है।
जिस गुरु के समीप ज्ञान की आराधना की है, ज्ञान प्राप्त किया है, जिस गुरु ने ज्ञानदान दिया है उसका नाम नहीं छिपाना अनिव है। एक अक्षर पढ़ाने वाले को भी भूलना महापाप है और जो आत्मकल्याणकारी ज्ञान देने वाले को भूल जाता है, उसके बराबर कोई पाप नहीं है।
हे क्षपक ! इस प्रकार आठ अंग सहित ज्ञान की आराधना कर। यह ज्ञानाराधना ही तेरे अज्ञान का नाश करने वाली है और मुक्तिपद देने वाली है। इस प्रकार जिनभाषित आठ अंग सहित ज्ञान की आराधना करनी चाहिए।
___ नव पदार्थों से लसत्, तत्त्वार्थ भाव से उत्पन्न, जिनभाषित सिद्धान्त में कथित जो पदार्थ हैं, उनका जो भक्ति से श्रद्धान करता है, रात-दिन उनका अधिगमन करता है; अभ्यास, मनन, चिंतन करता है वह शीघ्र ही कुकर्मों के समूह का नाश कर समीचीन प्रकार से परम ब्रह्म की आराधना से उत्पन्न चिदानन्द रूप परम पद को प्राप्त करता हैं ||५॥