Book Title: Aradhanasar
Author(s): Devsen Acharya, Ratnakirtidev, Suparshvamati Mataji
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
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आराधनासार-१२
जो भय प्रकृति वाला है, भयानक वस्तु के देखने से जो भयभीत होता है डरता है, वह भयानक रस है। भयभीत हुआ प्राणी दशों दिशाओं का अवलोकन करता है, उसका मुखशोष होता है, शरीर काँपने लग जाता है, वाणी में गद्गदपना आ जाता है, संभ्रम होता है, त्रास होता है, भय से शरीर विवर्ण हो जाता है, मोहित होता है, मूढ होता है- सर्वत्र भय से मूर्च्छित होता है- ये भयानक रस के चिह्न हैं। इस भयानक रस के पात्र प्रायः स्त्री, ब..कर नीच लोग होते हैं ! अर्थात भयानक र का वर्णन करते हुए ये ही शोभित होते हैं।
रौद्र रस क्रोधात्मक होता है. शत्रुओं के द्वारा पराजित होने पर क्रोध आता है। अर्थात् अपनी पराजय होने पर जो क्रोध उत्पन्न होता है, भीषण प्रवृत्ति होती है, उग्र क्रोध होता है, वह रौद्र रस कहलाता है। इसका पात्र क्रोधी होता है। जब क्रोध में आकर मानव शस्त्र फेंकता है, शत्रु को मारने के लिए दौड़ता है, परस्पर घात करने में तत्पर होता है, हिंसा में आनंद मानता है वह रौद्र रस कहलाता है। इसका पात्र रौद्र ध्यानी होता है।
मल, मूत्र, कफ, पीप आदि बीभत्स -ग्लानिमय पदार्थों का नाम सुनने से, उन पदार्थों के अवलोकन से या उनके स्पर्श से जो ग्लानियुक्त भाव होते हैं, चित्त में ग्लानि होती है, उसको बीभत्स रस कहते हैं।
सम्यग्ज्ञान से उत्पन्न शांत रस होता है। इस शांत रस का नायक (पात्र) निस्पृही साधु होता है। यह शांत रस राग-द्वेष के परित्यागी सम्याज्ञानी के उत्पन्न होता है।
इन नौ रसों में सर्वोत्कृष्ट रस आत्मकल्याणकारी, आत्मोत्थ सुखकारी, लोकोत्तर शांत रस है। उस शांत रस का कारण है वीर रस । शेष सात रस संसार के कारण हैं, दुर्गति में ले जाने वाले हैं।
यद्यपि शांत रस सिवाय, आठों ही रस लौकिक रस हैं फिर भी धर्म के उत्साह के बिना शांत रस की प्राप्ति नहीं होती है अतः तीन वीर-रसों में धर्मवीर रस शांत रस का कारण है।
शृंगार रस आदि का स्थायी भाव, सात्विक भाव, अनुभाव, विभाव भाव, व्यभिचारी भाव और इनकी दृष्टि आदि का कथन रसग्रन्थों में किया है।
सामान्य से रस का वास्तविक स्वरूप है- ज्ञान और ज्ञेय में भेद न रहे, तदाकार हो जाए, आत्मा अपनी आत्मा में लीन हो जाए, उसे अन्य ज्ञेय की इच्छा न रहे, वह शात रस है।
शांत रस का रसिक सम्यग्दृष्टि होता है- सारे रसों से भिन्न वह अपने आत्मानुभव (रस) में लीन होने की इच्छा रखता है।