Book Title: Aradhanasar
Author(s): Devsen Acharya, Ratnakirtidev, Suparshvamati Mataji
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
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आराधनासार- ११
शृंगार रस, वीर रस, करुण रस, हास्य रस, अद्भुत रस, भयानक रस, रौद्र रस, बीभत्स रस और शान्त रस के भेद से नौ प्रकार के रसों का कथन किया। रतिहासश्च शोकश्च क्रोधोत्साह भयं तथा। जुगुप्सा विस्मयशमाः स्थायिभावाः प्रकीर्तिताः। इन स्थायी भावों को ही क्रम से नव रस कहते हैं।
शृंगार रस स्त्री-पुरुष के संयोग से उत्पन्न होता है अर्थात् पुरुष के संयोग से जो रति है उसे शृंगार रस कहते हैं। वह दो प्रकार का है संयोग और विप्रयोग। स्त्री पुरुष का मिलन, सान्निध्य संयोग शृंगार कहलाता है और उन दोनों के वियोग से होने वाला शृगार विप्रयोग मार कहलाता है। संयोग के प्रच्छन्न, प्रकाश आदि अनेक भेद हैं। इसके पात्र स्त्री-पुरुष हैं। पूर्वानुरागात्मक, मानात्मक, प्रवासात्मक और करुणात्मक के भेद से विप्रयोग शृंगार चार प्रकार का है।
उत्साहात्मक वीर रस होता है। वह तीन प्रकार का है- धर्मोत्साह, दानोत्साह और संग्राम उत्साह र्थात् धर्मवीर, दानवीर और संग्रामबीर। इसका नायक श्लाघनीय गुण वाला होता है।
शोक से उत्पन्न वा शोकात्मक करुण रस होता है जिसे देखकर हृदय करुणा से ओत-प्रोत हो जाता है। भूमि पर गिर कर रोना, विवर्णभाव (भूमि पर लोट-पलोट होकर रुदन करना, शरीर को विवर्णता प्राप्त होना) मूढ़ता, निर्वेद (विषाद), प्रलाप (यद्वा तद्वा बोलते हुए रुदन करना), अश्रुधारा का बहना आदि क्रियाओं से करुण रस जाना जाता है अर्थात् करुण रस में ये भाव होते हैं।
हँसी का मूल कारण हास्य रस कहलाता है अर्थात् हँसी के द्वारा आंतरिक आनंद प्रगट किया जाता है वह हास्य रस है। हास्य रस की उत्पत्ति इष्ट अंग के वेष की विकृति से होती है जैसे बहुरूपिया आदि को देखने से हँसी की उत्पत्ति होती है। उत्तम, मध्यम और जघन्य के भेद से हास्य रस तीन प्रकार का है। कपोल, आँख आदि कृत उल्लास होठ के भीतर-भीतर रहता है अर्थात् मुस्कान होती है वह उत्तम हास्य रस है। जिस हँसी में थोड़ा मुख खुलता है वह मध्यम हास्य रस है तथा जो हास्य शब्द सहित होता है, जिसमें मुख पूरा खुलता है वह जघन्य हास्य रस कहलाता है।
असंभाव्य वस्तु के देखने से वा सुनने से जो आश्चर्य होता है वह अद्भुत रस कहलाता है। यह चार विभाव भावों से प्रगट होता है। जैसे असंभाव्य वस्तु को देखकर वा सुनकर नेत्रकमल विकसित हो जाते हैं, शरीर में रोमांच उत्पन्न हो जाता है, पसीना आ जाता है, नेत्र टिमकार रहित निश्चल हो जाते हैं, साधु-साधु वचन निकलते हैं और वाणी में गद्गदपना आ जाता है। ये अद्भुत रस के चिह्न हैं। इनसे अद्भुत रस का आना जाना जाता है।