Book Title: Aradhanasar
Author(s): Devsen Acharya, Ratnakirtidev, Suparshvamati Mataji
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
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+ उपसर्गसहन अधिकार के अन्तर्गत उपसर्गों के आने पर मुनि को क्या करना चाहिये इसका वर्णन
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* शिवभूति मुनि ने अचेतनकृत और सुकुमाल तथा सुकौशल मुनि भतियंचकृत उपसर्ग सहन किया इस कथन के अन्तर्गत संस्कृतटीका के द्वारा शिवभूति मुनि की कथा का वर्णन
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+ सुकुमाल मुनि की कथा
* सुकौशल मुनि की कथा
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गुरुदत्त, पाण्डव तथा गजकुमार के द्वारा मनुष्यकृत उपसर्गों के सहन करने का वर्णन
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गुरुदत्त की कथा
पाण्डवों की कथा
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गजकुमार की कथा
चाणक्य मुनि की कथा / अभिनन्दन आदि ५०० मुनियों की कथा
अकम्पन मुनिराज की कथा
श्रीदत्त तथा सुवर्णभद्र आदि मुनियों ने देवकृत उपसर्ग सहन किये
श्रीदत्त की कथा
जिस प्रकार इन मुनियों ने उपसर्ग सहन किये हैं उसी प्रकार हे क्षपक! तू सहन कर
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संजयन्त मुनि का चरित्र
* इन्द्रियमल्लजय नामक अधिकार के अन्तर्गत इन्द्रियरूपी शिकारियों से पीड़ित हुए मनुष्य रूपी हरिण विषयरूपी वन में प्रवेश करते हैं, इसका वर्णन
विषयाभिलाषा से दर्शन ज्ञान चारित्र और तप सभी निष्फल हैं
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ज्ञानमय भावना में चित्त लगाने वाले पुरुष ही अचेतनादि चार प्रकार के महान् उपसर्गों को सह सकते हैं
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इन्द्रियविषयों के विकार रहते हुए समस्त दोषों का परिहार नहीं हो सकता
* इन्द्रियरूपी मल्लों से पराजित हुए पुरुष विषयों की शरण में जाकर उनमें सुख मानते हैं
+ इंद्रियजन्य सुख परद्रव्य के समागम से होने के कारण सुख नहीं है।
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