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Regd. No. L. 4328
ला ! गैरियतकं परदे इकबार फिर उठादें । बशरने खाक पाया लाल पाया या गुहर पाया ।
बिछुड़ों को फिर मिलादें नक्शे दुई मिटादें । मिज़ाज अच्छा अगर पाया तो सबकुछ उसने भरपाया। ॐ दुनियाँके तीर्थों से ऊँचा हो अपना तीरथ । रगोंमें दौड़ने फिरनेके हम नहीं कायल ।
दामाने आस्माँसे उसका कलस मिलादे ॥ जो आँख ही से न टपका वह लहू का है ॥ हर सुबह उठके गाएँ मनतर वो मीठे मीठे ।
सारे पुजारियोंको मय पीतकी पिलादें ॥ चन्द दिन है शानोशौकतका खुमार । र शक्ति भी शान्ति भी भगतोंके गीतमें है। मौनकी तुशी नशा देगी उतार ॥ M धरतीके वासियों की मुक्ति प्रीत में है ॥ जब उठाएँगे जनाज़ा मिलके चार ।
-इकबाल हाथ मल मलकर कहेंगे बार बार ॥ कमाले बुज़दिली है पस्त होना अपनी आँखोंम। किस लिए आए थे हम क्या कर च ।
अगर थोड़ी सी हिम्मत हो तो फिर क्या हो नहीं सकता। जो यहाँ पाया यहीं पर धर चले ॥ * उभरने ही नहीं देती हमें बे माइगी दिलकी ।
-अज्ञात् B नहीं तो कौन क़तरा है जो दरिया हो नहीं सकता। जो मौत आती है आए. मर्दको मरनेका ग़म कैसा ? 3 हविस जीनकी है, दिन उम्रक बेकार कटते हैं। इमारतमें खुशीकी दफ्तरे रंजो अलम केमा ? जो हमसे जिन्दगीका हक़ अदा होता तोक्या होता ?
-अहमान 3 अहले हिम्मत मंजिले मकसूद तक आ भी गये। कह रहा यह आस्माँ यह सब समाँ कुछ भी नहीं। 8
बन्दए तकदीर किस्मतसे गिला करते रहे । पीस दूंगा एक गर्दिशमें जहाँ कुछ भी नहीं। जिन्दगी यूं तो फ़क़त बाज़िए तिफ़लाना है । कह रहा यह आस्मां कि कुछ समयका फेर है। मर्द वो है जो किसी रंगमें दीवाना है। पापका घट भर चुका अब फटनेकी दर है ॥
---चकवस्त जिनके महलोंमें हज़ारों रंगके फ़ानस थे । जो नस्ल पुर समर हैं उठाते वो सर नहीं। झाड़ उनकी कनपर बाकी निशा कुछ भी नहीं। सरकश हैं वो दरख्त कि जिनपै समर नहीं ॥ जिनकी नौवतकी सदासे गँजते थे श्रास्मौ । उस बोरिया नशीका दिली मैं मुरीद हूँ । दम बखुद हैं मत्राबरों में हूँ न हो कुछ भी नहीं । जिसके रियाजे जुहदमें पए वफ़ा नहीं ॥
--अज्ञात --अज्ञात जिनके हंगामोंसे थे आबाद वीराने की। जान जाए हाथसे जाए न सत्त । शहर उनके मिट गए आवादियाँ बन होगई ॥ है यही इक बात हर मज़हबका तत्त ।। -- 'इकबाल'
-क्रयाल
'वीर प्रेस श्रॉफ इण्डिया' कनॉर सर्कस न्य देहली में छपा ।