Book Title: Anekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 719
________________ अनेकान्त [भाद्रपद, बीर निवांश सं०२१५ साल्वमतपरीपा-इसके पर्वपक्षमें पच्चीस तत्वों- ...१० भादृ-प्रभाकरमतपरीक्षा-पूर्वपक्षमें भाटों के शानकी महत्ता बताते हुए माठरवृत्ति (पृ. ३८) द्वारा ग्यारह पदार्थों का स्वीकार करनेका स्पष्ट कथन है, में दिया गया यह श्लोक उद्धृत किया है जो किसी प्राचीन तर्कग्रन्थमें नहीं देखा जातापंचविंशतिवयो पत्र हुनाश्रमे रतः। ___"मीमांसकेषु ताबद् भाहा भणन्ति-पृथिव्यसेजो मी मुंडी शिजी केशी मुज्यते नात्र संशयः॥ वायुविकाजाकाशारममनाराब्दतमांसि इत्येकादशैव पदा ः ।" सहन ठीक अष्टसहस्रो-जैसा ही है। प्रभाकर नव पदार्थ ही मानते हैं-"द्रव्यं गुणः • वैशेषिकमतपरीक्षा-इसके पूर्वपक्षमें मोक्षके क्रिया जातिः संख्या सादृश्यशक्तयः । समवायामश्चेति साधन बताते हुए लिखा है कि-शेष पाशुपतादिदीचा नव स्युः गुरुदर्शने" भागुण क्रिया आदिको स्वतन्त्र प्राण-जटाधारण-त्रिकाबमस्मोद्धूलनावितपोऽनुष्ठानवि पदार्थ नहीं मानते। ऐपश्चा " ____ भाट जातिका और व्यक्तिमें सर्वथा तादात्म्य मान वैशेषिकके अवयवीका खंडन करते हुए उसे कर मी जातिको नित्य और एक मानते हैं। इसका 'अमूल्यदानायी'-बिना कीमत दिए खरीदने वाला खंडन करते हुए हेतुबिन्दुकी अर्चटकृत टीकामें उद्धृत लिखा है । यह पद धर्मकीर्तिके ग्रंथोंमें पाया जाता है। निम्न कारिकाएँ भी प्रमाणरूपमें पेश की गई हैं:इसकासमवायके खंडन वाला प्रकरण प्राप्तपरीक्षा' तावास्यं चेन्मतं जातेयक्तिजन्मन्यजातता । के साथ विशेष सादृश्य रखता है। और इमीका प्रति- नाशेऽनाशकेनेष्टेः तहमानन्वयो न किम् ॥ इत्यादि बिम्ब प्रमयकमलमातण्ड तथा न्यायकुमुदचन्द्रक समवाय बस सामान्यका खडन अधरा ही है । आगेका खंडनमें स्पष्ट देखा जाता है। ग्रंथ नहीं मिलता। नैयायिकमतपरीक्षा-वैशेषिक और नैयायिकों इसमें श्रागे भट्ट जयराशिसिंहकृत 'तत्त्वोपप्लवसिह में कोई खास भेद न बताते हुए वैशेषिकमतके साथ ग्रंथमें प्ररूपित तत्वोपप्लव सिद्धान्तको परीक्षा होगी । ही साथ इसकी भी लगे हाथ परीक्षा कीगई है । इसके अष्टसहस्री आदिकी तरह ही इसमें यह परीक्षा अत्यन्त पूर्वपक्षमें भक्तियोग, क्रियायोग तथा शानयोगका वर्णन विशद होनी चाहिए । है। भक्तियोगसे सालोक्य मुक्ति, क्रियायोगसे सारूप्य यहां तक तो ग्रंथका खंडनात्मक माग ही है। और सामीप्य मुक्ति, तथा शानयोगसे सायुज्य मुक्तिका भागेका 'अनेकाम्तशासनपरीचा' भाग, जो ग्रन्थका प्राप्त होना बहुत विस्तारसे बताया है। उत्तरपक्षमें मंडनात्मक भाग है और काफी विस्तारसे लिखा गया विपर्यय, अनध्यवसाय पदार्थोंको सोलहसे अतिरिक्त मानने होगा, इसमें उपलब्ध ही नहीं है। का प्रसंग दिया है । सोलह पदार्थों के खंडनका यही तर्कग्रन्थोंके अभ्यासी विद्यानन्द के अतुल पाण्डित्य, प्रकार प्रमेयकमलमार्तण्ड आदि ग्रंथोंमें भी देखा जाता तलस्पर्शी विवेचन, सूक्ष्मता तथा गहराईके साथ किए है। अन्तमें, उपसंहार करते हुए लिखा है कि- जाने वाले पदार्थों के स्पष्टीकरण एवं प्रसनभाषामें गंथे "संसर्गहानेःसाहानेयोगवचोखिजम् । भवेत्मसाप..." गए युक्ति जालसे परिचित होंगे। उनके प्रमाणपरीक्षा,

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