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अनेकान्त
[भावपद, वीर निर्वाण सं०१४॥
चुका है। परन्तु उसकी स्वोपक्ष टीका अभी तक गार और अनगार दोनोंकी टीका पृथक् पृथक् दो मंत्राप्य है । बम्बईके सरस्वती भवनमें इस सहन- जिल्दोंमें प्रकाशित हो चुकी है। नामकी एक टीका है परन्तु वह श्रुतसागरसूरिकृत इन २० प्रन्योंमेंसे मूलाराधना-टीका, इष्टोपदेश
टीका, सहस्रनाम मूल (टीका नहीं), जिनयज्ञकल्प निमयशकल्प-सटीक-जिनयज्ञकल्पका दूसरा मून ( टीका नहीं), त्रिषष्ठिस्मृति, धर्मामृतके नाम प्रतिष्ठासारोद्धार है। यह मूल मात्र तो पंडित सागार अनगार भागोंकी भव्य-कुमुदचन्द्रिकाटीका मनोहरलालजी शास्त्री द्वारा सं० १९७२ में प्रका- और नित्यमहोद्योत मूल (टीका नहीं ) ये ग्रन्थ शित हो चुका है। परन्तु इसकी स्वोपमा टीका प्रकाशित हो चुके हैं और क्रियाकलाप उपलब्ध अप्राप्य है। इस ग्रंथको पण्डितजीने अपने धर्मा- है। भरताभ्युदय, और प्रमेयरत्नाकरके नाम मृतशास्त्रका एक अंग बतलाया है।
सोनागिरके भट्टारकजीके भण्डारको सूचीमें अबसे पत्रिषटिस्मृतिशास-सटीक-यह ग्रंथ कुछ लगभग २८ वर्ष पहले मैंने देखे थे । संभव है वे समय पूर्व माणिकचन्द्र-प्रन्थमालामें मराठी अनु. वहांक भण्डारोंमें हों। शेष प्रन्थोंकी खोज होनी वादसहित प्रकाशित हो चुका है । संस्कृत टीकाके चाहिए। हमारे खयालमे आशाधरजीका माहित्य अंश टिप्पणीके तौरपर नीचे दे दिये गये हैं। नष्ट नहीं हुआ है । प्रयत्न करनेसे वह मिल
निस्थमहोबोत-यह स्नानशास्त्र या जिनाभिषेक सकता है। अभी कुछ समय पहले पण्डित पन्नालालजी सोनी
रचनाका समय द्वारा संपादित "अभिषेकपाठ-संग्रह" में श्रीश्रुतसागरसूरिकी संस्कृतटीकासहित प्रकाशित हो चुका पहले लिखा जा चुका है कि पण्डित श्राशा
धरजीकी एक ही प्रशस्ति है जो कुछ पद्योंकी १. रत्नत्रय-विधान-यह ग्रंथ बम्बईके ऐ० ५० न्यूनाधिकताके साथ उनके तीन मुख्य प्रथोंमें सरस्वती-भवनमें है । छोटासा ८ पत्रोंका ग्रंथ है। मिलती है। इसका मंगलाचरण
जिनयज्ञकल्प वि० सं० १२८५ में, सागारश्रीवईमानमानम्य गौतमादीच सद्गुरुन् ।
भाशावरविरचित पूजापाठ' नामसे लगभग रत्नत्रयविधि पश्ये यथाम्नायां विमुक्तये ॥
चारसौ पेजका एक ग्रन्थ श्री नेमीशा प्रादप्पा उपाध्ये, १८ अष्टांगहक्योचोतिनी टीका-यह आयुर्वेदा उद्गाव (कोल्हापुर ) ने कोई २० वर्ष पहले प्रकाशित चार्य वाग्भटके सुप्रसिद्ध ग्रंथ वाग्भट या अष्टांग- किया था। परन्तु उसमें माशाधरकी मुश्किलले दो चार हृदयकी टीका है और अप्राप्य है।
बोटी कोटी रचनायें होंगी. शेष सब वसा 11-२० सागार और मनगार-धर्मास्तकी भव्य- और जो हैं वे उनके प्रसिद्ध ग्रंथोंसे ली गई जान पाती अमुवचन्त्रिका टीका-माणिकचन्द्रग्रन्थमालामें सा- है।
है।
रोकी हैं।