Book Title: Anekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 775
________________ अनेकान्त [भारियन, वीर निर्वाव सं०२५५ पक्षियोंमें हंस मयूर, तोता,मैना, कोकिला सारसादि का उदय है। इस तरह पर नाना दृष्टिकोणोंसे और ऊँचे और अच्छे समझे जाते है तथा काक, कुक्कुट, नाना अपेक्षाओंसे तियचों भी उच्च व नीच गृब, उलूक, चील, चिमगादड़ आदि नीचे और दोनों गोत्रोंका उदय दृष्टिगोचर होता है। बुरे समझे जाते हैं । पशु-पक्षियोंम यह अच्छा व इस प्रकार ऊँच व नीच दोनों गात्रोदय, देव, बुरा तथा ऊँचा व नीचा समझा जाना क्या है ? मनुष्य, नरक, तियेच, इन चारों गतियों के प्राणियों यह ऊँच गोत्रोदय व नीच गोत्रोदय ही है । जैन में प्रत्यक्ष अनुभव गोचर होते हैं। भाचार दृष्टि से मिथ्याष्टि असुरकुमारादि पापाचारी देवोंकी अपेक्षासम्यकदृष्टि तिर्यचोंमें व पचम ___इसमें लेखकके मन्तव्य गुणस्थानी तिर्यचों में उस गोत्रका उदय है। (१) खडेलवाल, अग्रवाल, परवार, पाटोदी चतुर्थ गुणस्थानी देवों की अपेक्षा चतुर्थ गुणस्थानी संठी, मानौ, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, दिगम्बर तिर्यचों में नीच गोत्रका उदय है क्योंकि तिर्यचक श्वेताम्बर,(मुलसंघ मेनसंघ अर्धफालक संघ और सम्यक्त्वसे देवोंका मम्यक्त्व निर्मल होता है। गणगच्छादि गोत्र कम नहीं है । ये कंवल भिन्न भिन्न चतुर्थ गणस्थानी देवोंकी अपेक्षा पंचम गणस्थानी प्रकारकं मनुष्य ममूहोंको बतलाने वाले संकेत तिय चों में उच्च गोत्रका उदय है मिथ्यादृष्टि मात्र है। मनुष्यों की अपेक्षा चतुर्थ व पंचम गणस्थानी (२) अपनी लौकिक व धार्मिक प्रत्येक विषयको तिय चोंमें ऊँच गोत्रका अय है । सम्यक्त्वी उन्नति अवनतिको 'गौत्रकम' कहते हैं। मनुष्योंकी अपेक्षा सम्यक्त्वी तिर्य चोंमें नीच (३) लौकिक विद्याओं जैसे यंत्र विद्या, गोत्रका उदय है, क्योंकि तिय चोंके सम्यक्त्व गायन, वाह्य, युद्ध, वैद्यक, ज्योतिष आदि विद्याओं से मनुष्योंका सम्यक्त्व निर्मल होता है । को उन्नति अवनति भी गोत्र कर्म ( लौकिक) के सम्यक्त्वी मनुष्योंकी अपेक्षा पंचम गुणस्थानी ही भेद हैं। तिय चोंमें उच्च गोत्रका उदय है । पचम गुणस्थानी (४) जैनमिद्धान्तमें विवक्षित गोत्रकर्म मनुष्यों की अपेक्षा पंचम गुणस्थानी तिर्य धोंमें संयमा-चरण असंयमाचरणकी उन्नति अवनति नीच गोत्रका उदय है, क्योंकि तिर्य चोंके व्रतसे रूप है। मनुष्योंका व्रत ऊंचे दर्जेका होता है । मिथ्या दृष्टि (५) गोम्मटमार-कर्मकाण्डकी १३ वीं गाथा नारकीकी अपेक्षा मिथ्यादृष्टि व चतुर्थ व पंचम का वह आशय नहीं है जो आमतौरमं लिया जाता गणस्थानी तिर्यंचोंमे उबगोत्रका उदय है । सम्यक्त्व है। उसमें पड़े हुए 'मन्तानक्रमेणागत' विशेषणम नारकीकी अपेक्षा सम्यक्त्वी तिर्यचोंमे उच्च गोत्रका अपने ही, आचरणकी परम्परा विवक्षित है-पिता उदय है, क्योंकि नारकीके सम्यक्त्वसे तिर्यचका पितादिकं आचरणकी नहीं। तद्रूप सम्यक्स्व निर्मल होता है । सम्क्त्वो नारको (६) जीवका अपना स्वयंका आचरण ही की अपेक्षा पंचम गुणस्थानी तिर्य चमें उच्च गोत्र अपना गोत्र कर्म है।

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