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मेंडकके विषयमें एक शंका
[ले -श्री दौलतराम 'मित्र'] चेन्द्रिय तिर्षच जातिके जीव लिंगकी दृष्टिमे इम श्लोकको टीकामें खुलासा किया गया है 7 गर्भज और अगर्भज (समूर्च्छन ) दोनों कि-जिस प्रकार मंडककं चूर्णमे पीछे बहुतम प्रकारके होते हैं ऐसा गोमट्टसार-जीवकाण्डको मंडूक उत्पन्न हो जाते हैं उसी प्रकार अशुभ गाथा नं०७९ से जाना जाता है।
(पाप-बन्धक ) क्रियाकं चर्ण ( हानी ) में शुभ परन्तु सवाल यह है कि उनमेंसे मेंडक-वर्गके (पुण्य बन्धक ) क्रियाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। जीव गर्भज हैं या समूछन ?
(३) 'मेडक तो ऐमा विचित्र जन्तु है. और प्रमाण तो इसी बातके मिलते हैं कि यह जीव अपने जन्मका ऐमा सुन्दर नाटक दिखलाता है कि समूर्छन हैं । देखिय
लोग दंग रह जाते हैं। किसी मेंडकका चूर्ण बनाकर (१) "जीवे दादुर ( मेंडक ) बरमे तोय। और बारीक कपडेमे छान कर शीशीमें बन्द कर
सुन बानी सरजीवन होय ।।" १४॥ लीजिये । वर्षातम उम चर्णको पानी बरसते ममय यह प्राचार्य अचलकीर्ति कृत संस्कृत विषापहार जमीन पर डाल दीजिये, तुरन्त हो छोटे २ मेंडक का भाषापद्यानुवाद परमानन्दजो कृत है।
कूदन लगेंगे।' इसमें बतलाया है कि-हे भगवन् ! जिस प्रकार पानी बरसन पर मेडक सरजीवन हो जाते
-पंरघुनदन्दन शर्मा, अक्षर विज्ञान पृ०२२ हैं-मरे मंडक पीछे जी उठते हैं-उसी प्रकार (४) देखने में आता है कि यदि आज वर्षात
आपकी वाणी सुन कर भव्य जीव नवजीवन हो जाय तो कल ही मटीले जलाशयों में (जैस (ज्ञान-चेतना, सम्यक्त्व ) प्राप्त कर लेते हैं *। पोखरे, तालाब कच्चे कुएं आदि ) दो प्रकारके मेंडक (२) द्वितीया दोषहानिः स्यात् काचित् मंडक चणवत पाये जावेंगे। एक तो दो दो सेर वजनके बड़े बड़े आत्यंतिकी तृतीयात्तु गुरू-लाघव-चिन्तया" और दूसरे तीन तीन माशं तक छोटे २ । कारण
यह जान पड़ता है कि जिन मेडकोंके मृतक शरीर --यशोविजय (श्वे) अध्यात्मसार 1-४॥
अक्षय ( पूरे) रह कर मिट्टीमें दब गये उनकं तो किन्चसदर्शनं हेतुः संविचारित्रयोर्द्वयोः । बड़े २ मेडक बन जाते हैं, और जिनके मृतक शरीर सम्यग विशेषणस्योधयंहा प्रत्ययजन्मनः ॥ के टुकड़े टुकड़े हो गये उनके छोटे २ मेंडक बन -पंचाग्याषी, २-015
जाते हैं।