Book Title: Anekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 778
________________ मेंडकके विषय में एक शश (१) यदि कोई कहे कि अंडे गर्भज होते हैं, उनमें गर्भज जीवोंके समान शुक्र-शोणित-द्वारा मेंडकके अंडे देखे गये हैं, तो उत्तर यह कि अंडों संतानोत्पत्ति करनेकी योग्यता नहीं होती। अंडोंमें फर्क है, अंडे गर्भज (रजवीर्यज) और (६) ऐसी मुर्गियाँ मौजूद हैं, जो बिना मुर्गे समूर्छन दोनों प्रकारके होते हैं। जैसा कि पंडित का संयोग किए अंडे देती हैं, पर वह अंडे सजीव बिहारीलाल जी चैतन्य-रचित "बृहद् जैन शब्दार्णव' नहीं होते। (पृ० २७७ ) में लिखा है कि इस प्रकार यह प्रमाणित होता है कि मेंडक "नोट ३-अंडे दो प्रकारके होते हैं, गर्भज समूर्छन है, गर्भज नहीं है। और ममूर्छन । सोप, घांघा, चींटी (पिपिलिका) मेंडकके विषयमें-यहां पर एक खास वार्ता मधुमक्षिका, अलि (भौरा ), बर्र, ततईया, आदि ( कथा ) विचारणीय है। वह यह कि-भगवान बिकलभय ( द्वोन्द्रिय, बान्द्रिय, चतुन्द्रिय ) जीवोंके महावीरकी पूजा करनकी इच्छासे राजगृही-समय अंड समूर्छन ही होते हैं, जो गर्भमे नत्पन्न न हो शरणकं रास्ते गमन करता हुआ एक मेंडक हाथीके कर उन प्राणियों द्वरा कुछ विशेष जातिकं पुद्गल पावके नीचे दब जानसे मर कर देव हुआ । स्कंधोंकं सग्रहीत किए जाने और उनके शरीरके इस कथा पर कुछ सवाल उठते हैंपसेव या मुखकी लार (ठीवन ) या शरीरकी (१) अगर वह मेंडक सम्यग् दृष्टि (४ गु०) उष्णता आदिकं सयोगसे अंडाकारसे बन जाते हैं। था तो उसका गर्भज और संज्ञी होना आवश्यक या कोई समूच्र्छन प्राणीके समूच्छंन अंडे योनि है (लब्धिसार गा. २)। परन्तु मेंडक गर्भज द्वारा उनकं उदरसे निकलते हैं, परन्तु वे उदर में नहीं है, समूर्छन है। भी गर्भज प्राणियोंके समान पुरुषकं शुक्र और (२) अगर वह मेडक मिध्यादृष्टि (३ गु०) स्त्रियों के शोणितसे नहीं बनते । क्योंकि समूर्च्छन था तो यह भी ठीक नहीं है। क्योंकि तीसरा गुणप्राणी सब नपुंसक लिंगी ही होते हैं। और न वे स्थान रहते मरण नहीं होता है। योनिसे सजीव निकलते हैं, किंतु बाहर भान पर (गो. जी. २३-२४) जिनके उदरसे निकलते हैं उनको या उसी जातिके (३) अगर वह मेंडक मिध्यादृष्टि (१ गु०) अन्य प्राणियोंकी मुखलार आदिकं संयोगसे उनमें था तो उसके समवशरणमें जाकर तमाशा देखनेकी जीवोत्पत्ति हो जाती है।" इच्छा तो हो सकती है, परन्तु जिन पूजा करनेकी __ "नोट ४-समूच्र्छन प्राणी सर्व ही नपुंमक इच्छा नहीं हो मकती है। लिंगी होने पर भी उनमें नर मादीन अर्थात पुलिंगी मच बात तो यह है कि कथाएँ दो प्रकारको स्त्रीलिगी होनकी जो कल्पना की जाती है,वह केवल होती हैं, एक ऐतिहासिक दूमरी कल्पित । किसी उनके बड़े छोटे मोटे पतले शरीराकार और स्वभाव प्रबोध-प्रयोजन पोषणकं लिये कथाएँ कल्पित भी शक्ति और कार्यकुशलता आदि किमी न किमी गुण की जाती हैं। कहा है - विशेषकी अपेक्षासे की जा सकती है। वास्तवमें "प्रथमानुयोग विर्षे जे मूल कथा है ते तो जैसी

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