Book Title: Anekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 782
________________ वर्ष, किरण १२] तामिज भाषाका बैन साहित्य के द्वारा रचित था। कथाका क्या ढाँचा था,लेखक हित्यके ममय-निर्णयमें सीमालिंगका काम देनेवाला कौन था और वह कब विद्यमान था, ये सब बातें समझा जाता है। उसके लेखक चेरके युवराज हैं,जो केवल कल्पनाकी विषय रह गई है। इसी प्रकार लंगोवडिगल' नामके जैन मुनि हो गए थे। बौद्ध प्रन्थ कुंडलकशिक लेखक अथवा उसके समय यह महान् प्रथ साहित्यिक रिवाजोंके विषयमें के सम्बन्धम भी कुछ ज्ञात नहीं है । नीलकशि ग्रंथमे प्रमाणभूत गिना जाता है और बादके टीकाकारांके उद्धृत पद्योंम यह स्पष्ट होता है कि कुण्डलकेशि द्वारा इमी रूपमें उद्धृत किया जाता है। इसका एक दार्शनिक ग्रंथ था, जिसमें वैदिक तथा जैन सम्बन्ध नगरपुहार, कावेरिपूमपट्टणमके, जो चोल दर्शन जैसे अन्य दर्शनोंका खण्डन करके बौद्ध राज्यको राजधानी था, महान वणिक परिवारसे दर्शनको प्रतिष्ठित करनेकी कोशिश की गई है। बताया जाता है । करणकी नामकी नायिका इसी दुर्भाग्यस इन दोनों महाकाव्योंकी उपलब्धिकी कोई वैश्य वंशकी थी और वह अपने शील तथा पति आशा नहीं है । प्रकाण्ड तामिल विद्वान डा. वी. भक्तिके लिए प्रख्यात थी । चुंकि इस कथामें पांड्य स्वामिनाथ अय्यरकं प्रशंसनीय परिश्रमसं केवल राज्यकी राजधानी मदुरामें नपुर (anklet) तीन अन्य ग्रन्थ ही इस समय उपलब्ध हैं । यद्यपि अथवा शिलम्बु बेचनका प्रसंग है, इसलिए यह काव्योंकी गणनामें चिंतामणिका गौरवपूर्ण स्थान दुःखान्त रचना नूपुर अथवा शिलम्बुका महाकाव्य है, क्योंकि उस ग्रंथराजकी मर्वमान्य साहित्यिक कही जाती है। चूंकि इम कथामें तीन महाराज्यों कीर्ति है, परन्तु इमम यह कल्पना नहीं की जा का सम्बन्ध है अत: लेखक, जो चेर-युवराज्य है, सकती कि यह गणना ऐतिहासिक क्रम पर अव- पुहार, मदुरा तथा वनजी नामकी तीन बड़ी लम्बित है । प्रायःवलैयापति एवं कुंडलकेशि नामक राजधानियोंका विस्तारके साथ वर्णन करता है, लुप्त ग्रन्थ दूसरोंकी अपेक्षा ऐतिहासिक दृष्टिमं जिनमेंसे वनजी चेरराज्यकी राजधानी थी। पूर्ववर्ती जान पड़ने हैं, किन्तु इन प्रयांक विषयमं इम ग्रंथके रचियिता लंगोबडिगल् चेरलादन कुछ भी विदित नहीं है, अतः हम निश्चयपूर्वक कुछ नामक चेर नरेशके लघ पुत्र थे, जिसकी राजधानी भी नहीं कह सकते हैं। अवशिष्ट तीन ग्रंथोंमे वनजी थी । ल्लंगोवाडिगल चेरलादनके पश्चात होने शिनप्पडिकारम् तथा मणिमेकलै परम्पराके द्वारा वाले नरेश शेनगुटटुवनका अनुज था; इसीसे समकालीन बनाए जाते हैं, किन्तु चिंतामणि प्रायः उसका नाम लंगोवाडिगल अर्थान छोटा युवराज पश्चात्तवर्ती है । मण मेकले के बौद्ध ग्रंश होनेके था। जब वह मुनि हुए तब उन्हें जंगोवाडिगल कारण हम अपनी आलोचनामें उसे स्थान नहीं दे कहते थे, 'अडिगल' शब्द मुनिका उल्लेख करने सकते, यद्यपि कथाका सम्बन्ध शिलप्पडिकारम वाला एक सम्मानपूर्ण शब्द है । एक दिन जब से है जो कि स्पष्टतया जैन प्रन्थ है। यह साधु युवराज वन जी नामकी राजधानीमें स्थित शिजम्परिकारम्-'नपुरका महाकाव्य' अत्यन्त जिनमन्दिरमें थे, वब कुछ पहाड़ी लोग उनके पास महत्वपूर्ण तामिल ग्रंथ है, कारण वह तामिल सा- गए और उनने उस पाश्चर्यकारी दृश्यका वर्णन

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