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वर्ष ३
ॐ म
नीति-विरोध-वंसी लोक-व्यवहार-वर्तकः सम्यक् । परमागमस्य बीजं भुवनैकगुरुर्जयत्यने कान्तः ||
जि० सहारनपुर
सम्पादन-स्थान - वीरसंवामन्दिर (समन्तभद्राश्रग), सरसावा, प्रकाशन -स्थान- कनॉट सर्कस, पो० बो० न०४८, न्यू देहली श्रश्विना कार्तिक वीरनिर्वाण सं० २४६६, विक्रम स०१६६७
जिनसेन- स्मरण
जिनसेनमुनेस्तस्य माहात्म्यं केन वरार्यते । शलाकापुरुषाः सर्वे यद्वचोवशवर्तिनः ॥
किरण १२
- पार्श्वनाथचरितं वादिराज सूरिः
सम्पूर्ण शलाकापुरुष जिनके वचन के वशवर्ती हैं-- जिन्होंने महापुराण लिखकर ६३ शलाका पुरुषोंको (उनके जीवन वृतान्तको ) अपने अधीन किया है—उन भी जिनसेनाचार्यका माहात्म्य कौन वन कर सकता है ? कोई भी नहीं ।
याऽमिताऽभ्युदये पार्श्वजिनंन्द्रगुणसंस्तुतिः । स्वामिनो जिनसेनस्य कीर्तिसंकीर्त्तयत्यसो ||
-- हरिवंशपुराणे, जिनसेनः
'पाश्वभ्युदय' काव्य में पावजिनेन्द्रकी जो अपूर्व गुणसंस्तुति है, वह श्री जिनसेन स्वामीकी कीर्तिका आज भी संकीतन-खला-गान कर रही है।
पदि सकलकवीन्द्र - प्रोक्तसूक्त प्रचार श्रवण- सरस चेतास्तत्त्वमेव सखे ! स्याः । कविवर जिनसेनाचार्य वक्तारविन्द - प्रणिगदित-पुराणाकर्णनाभ्यं कर्णः ।
--कश्चिदज्ञातकविः
हे मित्र ! यदि तुम सम्पूर्ण कवि श्रेष्ठोंकी सूक्तियोंके प्रचारको सुन कर अपना हृदय सरस बनाना चाहते हो, तो कविवर जिनसेनाचार्य के मुख कमल द्वारा कथित पुराणको सुननके लिये कानोंको समीप लाभो - 'आदिपुराण' को ध्यानपूर्वक सुनो।