Book Title: Anekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 743
________________ १८ अनेकान्त [पारिवन, वीर निर्वाण सं०२४१६ १७ द्वादशभाव-जन्मप्रदीप इन सब प्रन्थोंमें नियुक्तियां मुख्यस्थान रखती हैं। १८ वसुदेवहिडी के इनका जन्म, दीक्षा, अवसानममय तथा शिष्यादिसंतति-जाननेके लिये मेरी दृष्टिमें आन के यह ग्रन्थ मूल प्राकृत भाषामें रचा हुआ सवा वाले प्रन्थों में कोई स्थल या साधन प्राप्त नहीं लाख श्लोक प्रमाण था ऐसा सुप्रसिद्ध हेमचन्द्राचार्य के होते । आगमके भभ्यासी और इतिहासके वेत्ता . गुरुदेव देवचन्द सूरि बतलाते हैं कि कोई नवीन तत्त्व बाहर लावेंगे तो हम जैसों के वंदामि भहबाहुँ जेण य अइरसिघबहुकहाकलिय। ऊपर उनका महान् उपकार होगा, ऐसी आशा रइयं सवायलक्खं चरिथं वसुदेवरायस्स ॥ रखकर विराम लेता हूँ। शान्तिनाथचरित्र, मंगलाचरण चरितममलमेतन्तमदासुन्दरीय भवतु शिवनिवासतथा श्री हंसविजयजी जैन लायब्रेरीकी ग्रंथमाला प्रापक भक्तिभाजाम् ॥ २४६॥ तरफ से छपाई हुई नर्मदा सुंदरीकथाके अन्तमे-- हाल में उपलब्ध वसुदेवहिण्डी तो संघदामक्षमा इति हरिपितृहिण्डेभद्रबाहुप्रणीते विरचितमिह श्रमणने आरभ की थी और धर्मसेनगणी महत्तरने पूरी लोकश्रोत्रपात्रैकपेयी की थी, उससे यह भिन्न होगी ।

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