________________
अनेकान्त
[पारिवन, वीर निर्वास सं.२०१६
वोस होता ही है, साथमें दरजीको दुगुनी तिगुनी बना हटी। कितना भाराम रहा! बाजारू चाट, नमकीन सिखाई और देनी पड़ती है, वरना वे तत्काल ही ईजाद मिठाई भादिसे पुरानी पद्धति वाली माताओं को इतनी हुए फैशमसे रहित रह बायें हाथमें कपसे कम 1)1) नफरत है कि वे उनका नाम तक नहीं लेती किन्तु परेका एक रेशमी रुमान चाहिए जो एक बार पसीने भाजकल वाली बहनों में इनका शौक ऐसा बड़ा है कि पोछने पर उस्टरके काम लिया जाने लगे और कर दे इनको बहुत ही मज़ोज़ समझ कर खाती हैं और कमलों की शोभाके लिए तुरन्त ही ताजा स्माल के लिये धर्म तथा धन दोनों ही से हाथ धो बैठनी है। भार जारी हो जाय । कपड़ों में जी खोल कर तरह घरमें काम करनेको नौकर चाकर हैं और समाज तरह के विलायती सेन्ट अँडेल दिए जाते हैं, जिनकी सेवा, देश सेवा तथा साहित्य सेवासे जगन नहीं। कीमत भारी मारी होती है और उपयोग रंचमात्र नहीं मादमी सोये भी तो किनना 'सोये । पादासे ज्यादा इसके अलावा सीमें काम पाने वाले बढ़ियामे बढ़िया घंटे रातम और २ घटे दिनमें समझ लीजिए । ३ घंटे स्वेटर, गुलबन्द, बुर्राव, दस्ताने आदिका ऐसा अनावश्यक भोजन करने प्रादिक और निकाल दीजिए । बचे हुए पर्च बड़ा है कि हर जाड़ेमें प्रति घर १००) ५०) रु. २ घंटों में अब करे तो क्या करें ? बस रेडियो और खर्च होता ही है। वास्तवमें देखा जाय तो महिलाओं ग्रामोफोन ! जो उन रसिक बहनोंको इश्क और ऐय्याशी ने जो इनका उपयोग करना शुरु किया वह पर्दासे के गन्दे गाने सुनाते रहें और उनके दिल और दिमाग बचनेके लिए नहीं किन्तु केवल फैशनके लिए किया को दूषित करने रहें । फिर ग्रामोफोनके रेकार्ड नित है।हा, यह खुशीकी बात है कि अब अधिकांश बहनें नये नये चाहिएँ । एक रेकार्ड एक बार सुना और वह इन चीज़ोंको हायसे बुन कर कामम लेने लगी हैं। तवियतमे उतर गया। एक एक रेकार्ड होना भी इससे खर्च भी कम करना पड़ता है और चीज़ भी चलाऊ चाहिए कमसे कम २॥) ३) का । वरना वह स्पष्ट तैयार होती है।
आवाज़ नहीं दे। अगर महिने में .. रेकार्ड भी नये हमारी नये युगकी बहनोंको खाने पीनेका वस्तुना खरीद लिए जाते हो नो २१) ३०) रुपये माहवारका में भी अनावश्यक खर्च करना पड़ता है और साथ ही तो यही खर्च पल्ले बँध गया । दिन भर चक चक जरूरी संयमका भी ध्यान नहीं रक्खा जाता | सुबह करने वाले रेडियो में जो बिजली खर्च हुई वह तो उठे चायका एक कप जल चाहिए । नाश्ता करनेके शायद खयालम पाती ही नहीं है। और फिर दिन भर लिए धरम कौन चीज़ बना कर रखें । हाथ बनाना रेडियो और रेकार्ड के निराकार गानोंको सुनकर भी तो सीखा ही कहाँ । फिर वही बाजारपे लिखी विस्कुट तबियत उब उठी तो शामको सिनेमाकी सैर होती है। ब्रिटेनिया बिस्कुट के डिब्बे मंगाये जाते हैं, जिनमें शुद्धता हैसियतके अनुसार १) २) ० का टिकट खरीदा जाता
और संयमको तो लात मार दी ही जाती है किन्तु रुपया है। साथमै रसिक सखी-सहेलियोंका होना भी श्रावपैसा भी मिट्टीकी तरह बरतना पड़ता है। कोई मेहमान श्यक होता है वरना अकेलेमें कोई दिक्षमाया बाजारसे मिठाई मंगाली गयी। पैसे खर्च हुए तो चस्पी नहीं । उनके टिकटोंका भार भी अपने ही पुरुषोंकी बसे और उनकी खुदकी रसोई में धुमाधोरीसे ऊपर लेना होता है।