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सरल योगाभ्यास
[ लेखक-श्री हेमचन्द्रजी मोदी
त्रानेकान्न' के प्रथम वर्ष की संयुक्त किरण न० ८-९. करण हो या नैयायिक और चाहे वैद्य हो अथवा अन्य
'१० में मैंने 'योगमार्ग' शीर्षक एक लम्प निम्बा और कोई-गुजरना पड़ता है। योगका ही मोक्षसे सीधा था और उसमें योगविद्या के महत्व और उसके इतिहास मम्बन्ध है । श्री हरिभद्रसूरि कहते हैं:पर कुछ प्रकाश डाला था। अब मैं 'अनेकान्त' के विद्वत्तायाः फलं नान्यत्सयोगाभ्यासतः परम् । पाठकोको योगाभ्यामके कुछ ऐसे सरल उपाय बतलाना तथा च शाखसंसार उक्तो विमबदिभिः ॥१०. चाहता हूँ जिनमे इस विषयमे रुचि रखनेवान्ने मजन
-योगबिन्दु ठीक मार्गका अनुसरण करते हुए. योगाभ्याममें अच्छी अर्थात्-योगाभ्याससे बढ़कर विद्वत्ताका और कोई प्रगति कर मके और फन्ननः शारीरिक तथा मानमिक फल नहीं है। इसके बिना संमारकी अन्य वस्तुओंके शक्तियों का विकासकर अपने दएकी मिद्धि करने में समान शास्त्रमी माइके कारण है, ऐसा विमलबुद्धियोंने ममर्थ हो सके । लेखमें इस बानका विशेष ध्यान रग्बा कहा है। गया है कि हरेक श्रेणी के लोग गहन्थ, ब्रह्मचारी, मुनि सम्यग्ज्ञानकी विरोधिनी तीन वासनायें है और ये श्रादि मय ही हमसे लाभ उठा मर्के। गृहस्थोंके लिये वामनायें बिना योगाभ्यामके नष्ट नहीं होती। जैसा कि ऐसे अभ्यास दिये जायेंगे जिन्हें वे बिना अड़चनके कहा है
और बिना कोई खाम समय दिये कर मकै तथा जिनके जोकवासनया जन्तोः शासवासमयापि। पास समय है उनके लिये ऐसे अभ्याम दिये गये हैं । देहवासनया ज्ञावं था पर वायते ।।।। जिनसे कममे कम समयमें अधिकसे अधिक लाभ जन्मान्तरशताभ्यस्ता मिथ्या संसारवासमा । उठाया जा सके । साथ ही, मौके मौकेपर मैंने अपने साचिराम्यासयोगेन विना नीयते चित् mu अल्प समय के अनुभवोंका हाल भी लिख दिया है,
शुक्लयजुर्वेदान्तर्गतमुक्तिकोपनषिद् जिनसे कि मुमुक्षुओंको सहायता मिल सके। वास्तवमें अर्थात्-लोकपासनासे, शास्त्रवासनासे और देह. योग ही एक ऐसी विद्या है जिसकी सबको समानरूपसे वासनासे जीवको ज्ञान नहीं होता। जन्म-जन्मान्तरोंसे
आवश्यकता है। भारतवर्ष के सभी विद्वानों-सभी शास्त्रों अभ्यास की हुई संसारवासना बिना योगके चिरकालीन का अन्तिम लक्ष्य और यहाँ तक कि जीवनका भी अभ्यासके क्षीण नहीं होती। अंतिम लक्ष्य मोब है, और योग वह सीढ़ी है जिससे इस प्राकथनके बाद अब योगके प्रथम और सर्व होकर ही हरेकको चाहे वह मुनि हो या गृहस्थी, वैया- प्रधान अभ्यासकी चर्चा की जाती है।