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[वैसास, बीरनिति सं०१६
पनि सुमुक्तिमूलक वर्शन है, और इसकी उत्पत्ति करते हुए एक तत्त्वबादकी मोर कुछ मप्रसर है, वैदिक कर्मकाण्डके प्रतिवादसे ही हुई थी। नास्तिक किन्तु जैनदर्शन तो नाबातकवादके अपर ही चार्वाक मारा इसके निकट कोई भी पावर पूर्णरूपसे प्रतिष्ठित है। नहीं। भारतीय अन्यान्य दर्शनोंकी तरह इसके भी अपने मूल सूत्र वत्व विचार और अपना मत- उपसंहारमें इतना ही कहना है कि जैनदर्शन प्रमात पाया जाता है।
विशेष विशेष विषयोंमें बौद्ध, चार्वाक, वेदान्त,
सांख्य, पातंजलि, न्याय, वैशेषिक दर्शनोंके सदृश जैनधर्म और वैशेषिक दर्शनमें भी इतनी होते हुए भी, एक स्वतन्त्र दर्शन है । वह अपनी समता पाई जाती है कि यह वेधडक कहा जा उत्पत्ति एवं उत्कर्ष के लिए अन्य किसी भी दर्शन सकता है कि इन दोनोंमें तत्वतः कोई प्रभेद नहीं। के निकट ऋणी नहीं है। भारतीय अन्यान्य परमाणु, विक, कान, गति, भात्मा प्रभृति तत्व. दर्शनोंके माथ. जैनदर्शन समता रखते हुए भी वह विचार इन. उभय दर्शनोंका प्रायः एक ही प्रकारका बहुतसे विषयों में सम्पूर्ण, स्वतन्त्र और सविशेष है, किन्तु साथ ही पार्थक्य भी कम नहीं है। रूप से अनोखा है.. बैशेषिक दर्शन बहुतत्व वादी, ईश्वरको स्वीकार