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ज्येष्ठ, भाषाए, बीड विवाद
२-पण्डित बनारसीदासकं लाहकसमयसार दिया था उसे कार्य में परिशत करनेका अपना टीका
भी कर्तव्य समझेगा, और तदनुसार जैन प्रन्थों
का अनेक भाषामों में अनुवादादि कर प्रचार ३-नित्यनियम पूजा संस्कृतची टीका।
करनेका जहर काई संगठित प्रयत्न करेगा। ऐसा ४ अकलंक स्तोत्रंको टीका।
करके ही वह अपने उपकारीके ऋणसे उऋण हो
सकंगा।। ५-तत्त्वार्थसूत्रको लघु टीका।
वीर सेवामन्दिर सरसावा पिछली चार टीकाओंके सामने न होनेके ता०५-५-१९४० कारण उनके विषयमें रचना संवत् और प्रशस्ति आदिका कोई ठीक परिचय नहीं मिल सका। यह लेख श्रीमूलचन्द किसनदासजी कापरिकाके माशा हे समाज पंडितजीके उपकारको स्मरण दिगम्बर जैन पुस्तकालय' सूरतसे शीघ्र प्रकाशित होने करता हुमा उनके सेवा भावका श्रादर्श सामने वाली 'मर्थप्रकाशिका' टीकाके लिये प्रस्तावनाके रूपमें रक्खेगा और जिनवाणीके प्रचारका जो सन्देश लिखा गया है। उन्होंने अपने शिष्य पंडित पन्नालालजी संघीको