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दृष्टि है, अनेकान्ती है, प्रत्येक तत्वको, प्रत्येक पटनाको उन्नति करता हुमा खोकी उन्नतिको नहीं सकता, प्रत्येक पुरुषार्थको अनेक अपेचात्रोंसे देखने वाला है। जो अपने उठने के साथ दूसरोंको उठाता चलता है अनेक अपेक्षामोंसे समझने वाला है, जो सर्वप्राहक उभारता चलता है वही धर्म मार्म पर चल सकता है। है, जो अपनी दृष्टिको एकान्तमें डालकर संकीर्य नहीं जो जितेन्द्रिय है, वशी है, शान्त चित्त है, विषयों होने देता । जो स्वहित-परहित, व्यक्तिगत हित की प्रासक्तिसे लक्ष्यको नहीं भूलता, कषायोंकी तीव्रतासे स्मष्टिगत हित, वर्तमान हित, मावि हित सब ही हितों कर्तव्यको नहीं छोड़ता, बाधामोसे घबराकर धीरताको की अपेक्षासे पुरुषार्थके हेय उपादेयपनका निर्णय नहीं खोता, वही धर्म पर चल सकता है। करने वाला है, जो प्रशावान है, जो साध्य और साधन, जो प्रात्म-विश्वासी है, जो सहायता-बर्य बाह्य व्यवहार और निधयोंसे किसीकी भी उपेक्षा नहीं देवी देवताओंकी और नहीं देखता,उनके प्रति याचनाकरता, जो यथावश्यक अपने समय और शक्तिको सब प्रार्थना नहीं करता, उनके प्रति यश हवन, पूजां भक्ति में हो पुरुषार्थोंमें बाँटने वाला है। जो सदा अपनेको समय नहीं खोता, जो स्वयं प्रात्मशक्तियोंमें भरोसा स्थिति अनुरूप बनाने वाला है, वही धर्म-मार्ग पर चल रखने वाला है, हद संकल्प शक्ति वाला है, निर्भय है, सकता है।
साहसी है, उद्यमी है, वही धर्ममार्ग पर चल सकता ___ जो निमोंही हैनाम-रूप-धर्मात्मक जगतमें रहता है। हुआ भी कभी उसको अपना नहीं मानता, कभी उसका जो सदा जागसक और सावधान है, जो अतिक्रम, होकर नहीं रहता, जो कमल समान सदा ऊपर होकर व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचारसे अपने मार्गको दूषित रहता है, सदा आत्महितका विचार रखता है। जो नहीं होने देता । जो निरंकार है, "मैं" और "मेरे" समस्त जगत, उसके समस्त पदार्थ, समस्त सम्बन्ध, के प्रपंचमें नहीं पड़ता; जो निष्काम है, निराकारी है, समस्त रीतिरिवाज, समस्त संस्थाप्रथा, समस्त विधि- जो कोई भी काम मान, मिथ्यात्व, निदानके वशीभन विधान, समस्त क्रियाकर्मको व्यवहार मानता है, पर होकर नहीं करता, जो अपने कियेका फल धन-दौलत, उठका साधन मानता है, साधन मानकर उनको पुत्र-कलत्र, मान-प्रतिष्ठा आदि किसी भी दुनियावी अर्थ ग्रहण करता है, रक्षा करता है, प्रयोग करता है, यथा- के रूपमें नहीं चाहता, जो अपनी समस्त शक्ति, समस्त
श्यक उनमें हेरफेर करने. सधार करणेमें तत्पर रहता पुरुषार्य.समस्त जीवन, ब्रमके लिये अर्पण करता है. है, यथावश्यक सदा उन्हें स्पागने, पाहुति देनेमें समस्त विचार, समस्त वाणी, समस्त कर्म ब्रह्मके लिये तय्यार रहता है, वही धर्ममार्ग पर चल सकता है। होम करता है, वही धर्म-मार्ग पर चल सकता है।
जो-अहिंसावान है, दयावान है, सबके हितमें जो कर्म-कुशल है, योगी है, जो बालक-समान अपना हित मानता है, सबके उबारमें अपना उद्धार एक बार ही चान्दको पकड़ना नहीं चाहता, जो सहायक मानता है; जो सबका हितैषी है, सबका मित्र है, जो शक्तियोंको बढ़ाता हुआ, विपक्ष शक्तियोंको घटाता पाप रहता है दूसरोंको रहने देता है, जो खुद स्वतन्त्र हुमा, भेणीबद्ध मार्गसे ऊपरको उठाता है, वही धर्म है, दूसरोकी स्वतन्त्रताका सादर करता है, जो अपनी मार्ग पर चल सकता है।