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नृपतुंगका मतविचार
[मन लेखक-मी एम. गोविन्द ]
(गत फिरवसे भागे)
(आ) गणितसारसंग्रह जो ८ श्लोकोंको उद्धृत किया है, उनमें से अपने यह जैन गणितज्ञ 'वीराचाय' की कृति है, लेखके लिये जितना भावश्यक अंश है उतना यहाँ इस प्रकार श्रीमान पाठक महाशय (क०मा०भूमि- दिया जाता है:का प.६) ने कहा है; पर इसका नाम 'महावीरा- अखण्यं निजगरसार पस्यानंतचतुष्पम् । चार्य' है, यह बात कै. वा. श्रीशंकर बालकृष्ण नमस्तस्मै जिनेद्राप महावीराप वापिने ॥॥ दीक्षितके 'भारतीय ज्योतिः शास्त्र' मराठी ग्रंथ (पृ० श्रीमदामोधवर्षय येन स्वेटहिरिया ॥३॥ २३० ) से, तथा अलाहाबादसे प्रकाशित 'सरस्वती'
विश्वस्तकान्तपस्य स्याहाहन्यापवाविनः । नामको हिन्दी मासिक पत्रिकाको जुलाई (१९२७) देवस्थ नृपर्नुगस्य वर्धता सस्य शासनम् ॥८॥ महीनकी संचिका (पृ० ७८३ ) से मालूम पड़ती
"चका (पृ० ७६२) स मालूम पड़ता इममें 'वर्धताम्' (वृद्धिगत हो) इस प्रकार है। यह वराहमिहिराचाय' ( ई० स० ५०५) वर्तमान कालार्थ विध्याशी रूप प्रयोग करनेसे, यह
और उमा ज्योतिष ग्रन्थोंके व्याख्याता 'भट्टा. प्रन्थ बहशः अमोघवर्ष-नपतुंग नामक किसी त्पल' ( ई० स० ९६७) के समय क बीचमें हुआ
नरेशके शामनकालमें लिखा हुआ मालूम पड़ता होगा, इस प्रकार श्री पाठक महाशयन कहा है।
है। पर राष्ट्रकूटवंशके नभय शाखाके नरेशोंमें (पृ०६) पर कोनसे आधारसे यह बात निर्णय
'अमोघवर्ष-नृपतुग' उपाधियोंमे युक्त नरेश की गई सो मालूम नहीं। यह गणित प्रन्थ होते बहतसं होगये हैं अतः इस अवतारिकामें कहा हुये और इसका कर्ता स्वयं गणितज्ञ होते हुयं भी ,
हुआ नपतुंग वही है यह कैसे कहा जा सकता है ? इसका रचना-समय इसमें नहीं कहा, यह बड़े
इम आचार्यने अपन पन्थ रचनेका समय, स्थान पाश्चर्यकी बात है।
अथवा अपने जिम राजाका नाम लिया उसके ___ इस 'गणितसारसंग्रह' की अवतारिका-प्रश
पिताका नाम नहीं कहा, इममें इसके नृपतुंगको स्तिसे श्री पाठकने अपनं उपायान (पृ०७) में
अपना नृपतुंग ममझ कर कहा हुआ श्री पाठक + वराहमिहिरका और महोत्पलाका समय श्री महाशयका वक्तव्य ठीक नहीं जंचता है। महामहोपाध्याय सुधाकर द्विवेदीजीके 'गणकतरंगिणी' अथवा इम आचार्य नृपतुंगको अपने नामक संस्कृत ग्रन्धके भाधारसे कहा है उस ग्रन्थमें इस लेखका नपतुंग ममझकर निष्प्रमाणसे स्वीकार बीराचार्य (अथवा महावीराचार्य) का उल्लेख नहीं है। करने पर भी, इस काव्यमे कहा हुआ विध्वस्त'