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अनेकान्त
दुसरे पथमें हरिहरकी स्तुति है । इत्यादि । अत एव इस 'कविराजमार्ग' का कर्ता नृपतुंग नहीं है; उसके आस्थानके किसी कवि द्वारा रचित है, उसकी अत्रतारिका में विष्णुस्तुतिसे, निर्दिष्ट धर्म नृपतुंगका स्वधर्म ही होना चाहिये रचयिताका स्वधर्म नहीं होगा ।
'कविराजमार्ग' के अवतारिका-पद्य विष्णुस्तुति-सम्बन्धी नहीं हैं, उन पद्योंमें नृपतंगने अपना ही वर्णन किया होगा इस प्रकार कोई आक्षेप करेंगे तो, वह आक्षेप निराधार है। इस आक्षेपको निम्न लिखित कारणों से निवारण कर सकते हैं,
'कविद्वारा अपने कथानायकको या अपनेको अपने इष्टदेवता के साथ तुलना करते हुये अथवा इष्ट देवताको अपने कथानायक के नामसे या अपने नाम से उल्लेख करते हुये स्तुति करने की रूढि बहुत पुराने समय से कर्नाटक तथा संस्कृत काव्यों में है। उदाहरण:
१ 'भास' महाकविके 'प्रतिज्ञायौगन्धरायण' नाटकी आदि की महासेन ( = स्कन्द) स्तुतिमें उसके मुख्य पात्रोंके नाम हैंपातु वासवदत्तायो महासेनोतिवीर्यवान् । वत्सराजस्तु नाम्ना सशक्तिरान्धरायणः ॥ १ ॥
'अपने 'पंचरात्र' नाटकमें नान्दीकी कृष्णस्तुतिमें नाटक पात्रोंके नाम दिये गये हैं
द्रोणः पृथिव्यर्जुनमीमदूतो । यः कर्णधारः शकुनीश्वरस्य ॥
+ 'जन का शासनसंग्रह ' ( 'कर्नाटककाव्यकलानिधि' नं०३४ मैसूर) ।
[भाद्रपद, वीर निर्वाण सं० २०१६
दुर्योधनो भीष्मयुधिष्ठरः स पायाद्विरागुत्तरगोभिमन्युः ॥१॥
तारिकाकी विष्णु स्तुति में अपने पोषक चालुक्य (२) आदिपने 'विक्रमार्जुनविजय' की अव अरिकेसरिकी विष्णु के साथ तुलना की है
........... 'उदास ना ।
रावणनाद देवनेम गीगरिकेसरि सौपकोटियं ॥ १ ॥
(३) रन्नने अपने 'गदायुद्ध' में अपने पोषक चालुक्य नरेश तैलप आहब मल्लकी ( ई० स० ९७३९९७) विष्णु के साथ तथा शिव, ब्रह्म, सूर्य, इत्यादि देवताओंके साथ तुलना करते हुये काव्य का प्रारम्भ किया है
'आदिपुरुषं पुरुषोत्तमनी
चालुक्यना । रायण देवीनीगेमागे मंगलकारण मुरसवंगलं ॥ १ ॥
(४) श्रवणबेलगोलकी गोमटेश्वर महामूर्तिके ( ई० स० ९८१) प्रतिष्ठापक चामुंडरायके गुरु नेमि'चन्द्रने अपने 'त्रिलोकसार' नामके प्राकृत प्रथमें अपने इष्ट तीर्थकर ३३वें ( २२वें ) ? 'नेमिनाथजिन ' के नामको अपना नाम 'नेमिचन्द्र' से उल्लेख करते हुये उनकी स्तुति श्लेषसे कही है
गोविन्दसिंहामणिकिरण कस्ता वरुण चरण यह किरयां । विमलयरणेमिचंदं तिहु वय चंदं यमं सामि"* ॥
(५) आदिपपने अपने धर्म ग्रन्थ कन्नड 'आदिपुराण' (ई०स०९४१-४२) के २रे आश्वास से
'बल गोविन्दशिखामणिकिरणकलापारुणचरणनख किरणम् विमक्षतरनेमिचन्द्रं त्रिभुवन चन्नमस्यामि ॥