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देहली
नीति-विरोष-ध्वंसी लोकव्यवहार-वर्तकः सम्यक् ।
परमागमस्य बीजं भुवनेकगुरुर्जयत्यनेकान्तः ॥ ) सम्पादन-स्थान-वीरसेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम), सरसावा, जि. सहारनपुर । वर्ष ३ । प्रकाशन-स्थान-कनॉट सर्कस, पो० बो० नं. ४८, न्य
किरण १० श्रावण-पूर्णिमा, वीरनिर्वाण सं०२४६६, विक्रम सं० १९६७
देवनान्दि-दूज्यपादस्मरण यो देवनन्दि-प्रथमाभिधानो बुद्धचा महत्या स जिनेन्द्रबुधिः।। श्रीपूज्यपादोऽजनि देवताभिर्यत्पूजितं पादयुग यदीयं ।। -श्रवणबेलगोल शिम..
जिनका प्रथम नाम-गुरुद्वारा दिया हुआ दीक्षानाम-'देवनन्दी' था, जो बादको बुद्धि की प्रकर्षताके कारण "जिनेन्द्रबुद्धि' कहलाए, वे प्राचार्यश्री 'पूज्यपाद' नामसे इसलिये प्रसिद्ध हुए हैं कि उनके चरणोंकी देवताओं ने पाकर पूजा की थी।
श्रीपूज्य गदोपतधर्मराज्यस्ततः सुराधीश्वरपूज्यपादः। यदीयवैदुष्यगुणानिदानी वदन्ति शास्त्राणि तदुद्धृतानि । धविश्वबुद्धिरयमत्र योगिभिः कृतकृत्यभावमविदुषकः। जिनवबभूव यदना चापहृत् स जिनेन्द्रबुद्धिरिति साधुवर्णितः ।।-अवरवेल्गोल शि००० १०८
___ श्री पूज्यपादने धर्मराज्यका उद्धार किया था-लोकमें धर्मकी पुनः प्रतिष्ठा की थी-इसीसे भाप देवतात्रोंके अधिपति-द्वारा पूजे गये और 'पूज्यपाद' कहलाये । श्रापके विद्या विशिष्ट गुणोंको आज भी आपके द्वारा उद्धार पाये हुए-रचे हुए-शास्त्र बतला रहे है-उनका खलागान कर रहे है। श्राप जिनेन्द्रकी तरह विश्वबुद्धिके धारक समस्त शाखाविषयोंके पारंगत ये और कामदेवको जीतने वाले थे. इसीसे आपमें ऊँचे दर्जे के कृतकृत्यमावको धारण करने वाले योगियोंने आपको ठीक ही जिनेन्द्रबुद्धि' कहा है।
श्रीरबपादमुनिरपतिमौषषर्वियादिदेहजिनदर्शनपूतगात्रः। यत्पादौतजवा-संस्पर्शप्रभावात् कालायसं किलं तदा कनकीपकार ।। --.शि.० १०० जो अद्वितीय औषध-ऋद्धिके धारक थे, विदेह-स्थित जिनेन्द्र भगवानकै दर्शनसे मिनका गात्र पवित्र