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अहिंसा-सम्बंधी एक महत्वपूर्ण प्रश्नावली
अहिसाका प्रश्न राष्ट्रीय दृष्टि से निःसन्देह एक बड़े ही महत्वका प्रश्न है । वह भारतके ही नहीं कन्तु अन्य देशोंके लिये भी जहाँ युद्धका दावानल धधक रहा है और धंधकने वाला है, आजकल गभीर विचारका विषय बना हुआ है । कांग्रेसने अहिसाकी नीतिको अंगीकार कर उसका हाल में जिस रूपसे परि. त्याग किया है और उस पर महात्मा गाँधीजीने कांग्रेससे अलग होकर अपना जो वक्तव्य दिया है, उससे इस प्रश्न पर अधिक गहराई के साथ विचार करनेकी और भी ज्यादा आवश्यकता हो गई है । जैनियोका अहिसा सिद्धान्तके विषय में खास दावा है और वे अपने धर्मको उसका मूल स्रोत बतलाते हैं, इसलिये उस की उलझनोंको सुलझाना उनका पहला कतव्य है । बड़ी खुशीकी बात है कि कलकत्तेके श्रीविजयसिंहजी नाहर श्रादि कुछ जैन सज्जनोंने जैनदृष्टि से इस विषय पर गहरा विचार करनेके लिये एक आन्दोलन उठाया है और एक पत्र द्वारा अपनी प्रश्नावलीको समाजके सैंकड़ों गणमान्य विद्वानोंके पास भेजा है। 'तरुण ओसवाल' में छापा है और दूसरे पत्रोंमें भी छपाया जा रहा है। आपका वह पत्र नीचे दिया जाता है । साथमें महात्मा गाँधीजीका वह विस्तृत भापण भी है. जिसका इस पत्रमें उल्लेख है और जिस पर खास तौरसे ध्यान देनेकी पत्र में प्रेरणा की गई है। आशा है 'अनेकान्त'के विज्ञ पाठक महात्माजीक परे भापणको गौरके साथ पढ़ेंगे और फिर जैनदृष्टि से उस प्रश्नावलीको हल करनेका पूरा प्रयत्न करेंगे, जो पत्र में दी हुई हैं। इससे देशके सामने जो प्रश्न उपस्थित है उसके हल होने में बहुत कुछ सहायता मिल सकेगी।
-सम्पादक] कम यह पत्र आपकी मेवामें एक बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न योग न करें, यह सिद्धान्त अधूरा भौर पर ही रहेगा। ९ की चर्चा के विषय में भेज रहे हैं और इस छूटके जीवन के अमुक क्षेत्र में तो दिन रातके २४ घंटों में से लेनेकी क्षमा चाहते हैं।
अमुक समय में ही अहिंसाका पालन और शेषमें हिंसा प्राज देश भर में इस बातकी चर्चा हो रही है कि की छूट, हमें तो यह केवल अंधा ज्ञानहीन धर्मपालन प्राया बाहरी आक्रमण या अन्दरूनी मगहोंसे देशको ही मालम होता है । इसमें कायरता भी मालूम होती और देशवासियों की रक्षा बिना फ़ौज-हथियारोंके और है। हमारा मतलब यह नहीं है कि कोई भी भादमी अहिंसक तरीकेसे हो सकती है या नहीं । जैसा कि पूर्ण हिसक रूपसे जीवन व्यतीत कर सकता है। यह प्रापको विदित है, आज पिछले २५ वर्षसे हिन्दुस्तान तो असम्भव सी बात है। क्योंकि जीवन के लिये हिंसा की भाजादीके लिये राजनैतिक क्षेत्रमें मी पहिंसाके किसी न किसी रूपमें अनिवार्य है, पर हिंसाको कुछ सिद्धान्तका प्रयोग हो रहा है। इसके पहले तक हमारे क्षेत्रों में ही सीमित कर देना और दूसरे क्षेत्रोंमें हिंसा तयाजमें अहिंसाधर्म व्यक्ति के निजी जीवन में और की प्रधानता और छूट मान लेना तो अहिंसाके मूल उसमें भी एक संकुचित दायरेमें सीमित रहा, पर यह पर भाषात करना है, हमारा ऐसा नपान है । ऐसी स्पष्ट है कि जब तक हिंसाके सिद्धान्तका हम हमारे स्थितिमें अहिंसा केवल एक विडम्बना मालूम होती है। व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन के सभी क्षेत्रों में उप- इस सिलसिले में हम आपका ध्यान महात्मा गाँधीके