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वर्ष ३, किरण ..]
पीरोंकी हिंसाका प्रयोग हो सकता । तब तो हमको ऐलान कर देना चाहिये स्वभावसिद्ध कार्य ही स्वधर्म है कि हम लोगोंके प्रतिनिधि नहीं बन सकते।
जो कुछ हम करें, वह धर्मकी भावनासे करें। दिली अहिंसा
केवल भावुकतासे नहीं । मैं आज यहाँ बोलने अगर आप कांग्रेसमें रहकर अहिंसाका प्रचार आ गया हूँ। अपना धर्म समझ कर पाया हूँ । करना चाहते हैं, तो आपको खबरदार रहना मौन तो मेरा स्वभाव हो गया है । मौन मुझको होगा। आपकी अहिंसा सच्ची अहिंसा होनी मीठा लगता है । वह मेरा विनोद हो गया है। चाहिये । अगर मैं दिलसे भी किसी आदमीको मनुष्यका कर्तव्य भी जब स्वभाव-सिद्ध हो जाता मारना चाहता हूँ तो मेरी अहिंसा खतम है। मैं है, तो वही उस का विनोद हो जाता है । फिर शरीरसे नहीं मारता, इसका मतलब यही है कि मैं कर्तव्य क्या रहा ? वह तो उसका स्वभाव हो गया; दुर्बल हूँ । किसी आदमीको लकवा हो जाय तो आनन्द हो गया। अब तो मेरे लिए मौन स्वभाववह मार नहीं सकता । उसी तरहको मेरी अहिंसा सिद्ध हो गया है। इसी तरह अहिंसा हमारे लिए हो जाती है। अगर आप दिलसे भी अहिंसक हैं स्वभाव-सिद्ध हो जाना चाहिये । कर्तव्य जब तो कांग्रेसके महाजनोंसे कह सकते हैं कि हम तो स्वभाव-सिद्ध हो जाता है, तब वह हमारा स्वधर्म शुद्ध अहिंसाकै प्रयोगके लिए तैयार हैं। हो जाता है। भावुक न बनें
उमी तरह आप दिन भर जो करेंगे, उसके
साथ अहिंसाका तार चलता ही रहेगा । चाहे उस हालात में आपको अपना परीक्षण करना
झूठे तर्क शास्त्र के आधार पर क्यों न हो, होगा, फ्रजरसे शाम तक आप जो जो कार्य
आपके लिये अहिंसा ही परम धर्म होगा । झठे करेंगे, उसके द्वारा शुद्ध अहिंसाकी साधना करनी
तर्क शास्त्रको ही माया कहते हैं । दूमरोंके लिए होगी। केवल दिखावेकं लिए नहीं, कंवल भावु
वह माया है लेकिन हम जब तक उसमें फँसें हैं, कतासे नहीं। हम केवल भावक बनेंगे तो वहममें फँसेंगे । भावुकताके सिलसिलेमें मुझे एक किस्सा
तब तक हमारे लिए वह माया नहीं है । हमारे
लिए वह सत्य ही है। मैं जानता हूँ कि इस चरखे याद पाता है । मेरे पिताजीके पाम एक सज्जन
पर ज्यों ज्यों एक तार कातता हूँ त्यों त्यों मैं स्वआया करते थे । बड़े भावुक थे, वहमी थे । जहाँ
राज्यके नजदीक जाता हूँ। यह माया हो सकती किसीने छींक दिया कि बैठ गये उनके घरसे आने के लिए पांच मिनट लगते थे। लेकिन इन भाई
है लेकिन वह मुझे पागलपनसे बचाती है । को पचास मिनट लग जाते थे । छींकोंके कारण
आपको इस तरह अनुसंधान करना चाहिये । बेचारे रुक जाते थे । इसी तरह हम भावकतासे अहिंसक उपकरणके यज्ञ अहिंसाके नाम पर सभी कामोंसे हट सकते हैं। यह चरखा मेरे लिए अहिंसाकी साधनाका मैं ऐसा नहीं चाहता।हम सब ऐसे भावुक न बनें। औजार है। वह जड़ वस्तु है । लेकिन उसके साथ