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वर्ष ३, किरण 10]
नपतुंगका मतविचार ने अपनी मध्यमावस्थामें-अर्थात ४०-४५ वर्षके करके पश्चात आदिपुराण लिखना प्रारंभ किया पहिले ही लिखा होगा, यह बात उसकी वर्णना यह बात वास्तविक है; ऐसी अवस्थामें इसे उमने वैखरी इत्यादिसे मालूम पड़ती है । इसे जिनसेन- अपनी ८४-८५ वर्षको अवस्थाके पश्चात् लिखना ने ई० सन् ८०० से पहिले ही लिखा होगा; याने प्रारंभ किया होगा,पर वह इसे पूर्ण नहीं कर सका; नपतुंगके गद्दी पर आरूढ़ (ई० स०८१५) होनेके इमकं ४२ पर्व तथा ४३ वें पर्वके ३ श्लोक मात्र करीब १५ ( या ज्यादा ) वर्षोंके पहिले लिखा (याने कुल १०,३८० श्लोकोंको) लिखने पर वह होगा। (पर 'हरिवंश' में इस काव्यका जिक्र न जिनधामको प्राप्त हुआ । उस उन्नतावस्थामें भी श्रानेसे। यह ई० सन् ७७८-७८३ के पहिले नहीं १०,३८० श्लोकोंके लिखनेमें उसे १० वर्ष तो लगे वनकर पीछे लिखा गया ऐसा कहना चाहिये ।) हागे । उस वक्त उनकी ९५ वर्षके करीब तो ऐसी अवस्थामें इस 'पार्वाभ्युदय' में कहा गया अवस्था होनी चाहिये। ऐसी अवस्थामें उनका 'अमोघवर्ष' राष्ट्रकूट गुजरात-शाखाका दूसरा देहावसान ई. सन् ८४८ के आगे या पीछे हुआ 'कक' नामका अमोघवर्ष होगा क्या ? क्योंकि होगा। जिनसेनन अपनी 'जयधवला' टीकाको गुर्जरनरेश ४ जिनमेनके मरणानंतर उसके शिष्य गुणसे पालित मटग्राममें लिखकर समाप्त किया है। भद्रने इस ग्रंथमें करीब १०,००० श्लोकोंको जोड नपतुंगकी (या उसके पिता गोविन्दकी) राजधानी कर, करीब २०,००० श्लोक प्रमाण इस 'महापुराण' मान्यखेटमें या अन्य किसी जगहमें नही लिखा को समाप्त किया। अपनी रचना-समाप्ति-समय जानसे जिनमेनके पोषक राष्ट्रकूट वंशज गुजरात- के सम्बन्धमं वह उसकी प्रशस्तिमें । इस प्रकार शाखावाले शायद होंगे, इस शंकाको स्थान मिलता कहता है :है । अथवा 'पाश्चाभ्युदय' को जिनसनने अपनी अकालवर्पभूपाले पालयत्यखिलामिलाम् ॥३२॥
आयुकं ६० वर्ष पश्चात स्त्रय लिखा होगा तो उसमें कहा गया अमोघवर्ष इस लेखका नायक नृपतुंग श्रीमति लोकादित्ये ....................॥३३॥ ही होगा।
चेलपताके चेलध्वजानुजे चेल केतनतनूजे । ३ आदिपुराण (अथवा पूर्वपुराण)-यह जैनेन्द्रधर्मवृद्धिविधायिनि.........॥३॥ जिनसनका अन्तिम ग्रन्थ है। जिनसनने अपने वनवासदेशमखिलं भुजति निष्कंटकं सुखं सुचिरं । गुरु वीरसनक स्वर्गारोहणानंतर उनसे नहीं पूरी -- -- ---- ------- की गई-बची हुई 'जयधवला' टीकाको स्वयं पूर्ण इसमें 'पादिपुराण' (अथवा 'पूर्वपुराण' ) की
कुन श्लोकसंक्या १२,०००, 'उत्तरपुराण' की संख्या + हरिवंश' में 'जिनेन्द्रगुणसंस्तुति' रूपसे ...है, ये दोनों भाग मिलकर 'महापुराण' कहइसी काव्य ग्रंथका उल्लेख जान पड़ता है।
लाता है। -सम्पादक जि. सि. मा० भाग १, पृ २६