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वर्ष ३. निम्म ..]
नपतुंगका मत विचार
२. नपतुंगने ई० सन् ७९५-७९. के अन्दर 'पार्वाभ्युदय' काव्य जन्म लिया होगा, वैसे ही जिनसेनने ई० सन् इम काव्यके अन्तमें (४, ७०)-- ७५३ से पहिले ही जन्म लिया होगा, इससे 'भुवनमवतु देवस्सर्वदामोषवर्षः।' जिनसेन नपतुंगसे उमर में करीब ४२-४४ वर्ष इस प्रकार सिर्फ आशीर्वाद वचन ही है । बड़ा होगा । 'उत्तरपुराण' के श्लोकके अनुमार इससे यह काव्य पूर्ण करते वक्त अमोघवर्ष नामका नपतुंग-अमोघवर्षने जिनसेनको वंदन किया कोई नरेश था उसे जिनसेनने अपने कान्यमें उल्लेयह बात जिनसेनके अवसान के पहिले ही खित किया, इतना ही मालूम पड़ता है। इससे वह होनी चाहिये और वह ई० सन् ८४८ के पीछे अमोघवर्ष इस जिनसेन-द्वारा जैनधर्मी हुआ होनी चाहिये। जिनसेनने अपनी 'जयधवला' था--उसका शिष्य हुभा ऐसा अर्थ होता हो तो टीका को ई० सन ८३७ में पूर्ण किया उसके पहिले मैं नहीं जानता। ही उसे अमोघवर्ष-नपतुगन अपना गुरू बनाया परन्तु इस काव्यकी छपी हुई प्रति (Nirnaहोगा, तब उम कीर्तिदायि विषयको जिनसेन yasagara Press, Bombay : विक्रम स० अरने पवित्र ग्रन्थ-उस टीका-में व्यक्त किये १९६६ ) के प्रत्येक सगंके अन्तमें यह एक वि.अमोघवर्षराजेन्द्रप्राज्यराज्यगुणोदया' इतना ही गद्य है :कह सकता था क्या? अथवा अपने शिष्य अमोघ. "इत्यमोघवर्षपरमेश्वर-परमगुरु-श्रीजिनसेनाचार्यवर्षको राजधानीमें या उसके राज्यके अन्य विरचित-मेघदूतवेष्टितवेष्टिते पार्वाभ्युदये भगवत्कैवल्यस्थान पर उसे नहीं लिखकर 'गुर्जरायसे पालित' वर्णनं नाम (प्रथमः, द्वितीय, तृतीयः,चतुर्थः) सर्गः॥" मटग्राममें उसे लिखता क्या ?
___ इससे जिनसेन अमोघवष का गुरु था यह
बात मालूम पड़ती है, पर यह रचना स्वयं जिनसेन ३. जिनसेन के अन्तिम ग्रन्थ 'आदिपुराण',
' की नहीं, बहुतसे समयकं पश्चात प्रक्षिप्त हुई में नृपतुग-अमोघवर्षका नाम नहीं है । यदि वैमा ,
होगी, यह बात निम्न लिखित कारणोंसे मालूम नरेश उसका शिष्य हुआ होता तो उसका नाम
पड़ती है:जिनसेनने क्यों नहीं कहा सो समझमें नहीं
१. यह काव्य कालिदासके 'मेघदूत' के ऊपर पाता।
समस्या-पूर्तिके रूपमें रचा गया है । 'मेघदूत' में ४. गुणभद्रके 'उत्तरपुराण' में जिनसेनकी 'पूवमेघ', 'उत्तर मेघ' इस प्रकार दो भाग हैं उनके 'जयधवला' टीकामें तथा '
पार्वाभ्युदय' में अनुमार इसमें भी दो भाग होने चाहिये थे, पर 'श्रमोघवर्ष' ऐसा नाम देखा जाता है। राष्ट्रकूट इसमें वैसे न होकर केवल ४ सर्ग रक्खे गये हैं, वशक नरेश"शव' का 'शर्व' नाम तथा मुख्यतः जो न्यूनाधिक रूपमें विभाजित दिखाई देते हैं., 'अमोघवर्ष' नामसे विशेष प्रख्यात् 'नृपतुंग' . प्रथम सर्गमें 11 पच, दुसरेमें. ११८, .तीसरेमें ऐसे नामका बिलकुल प्रभाव क्यों?
२७, चौथेमें 1, कुल पसंख्या ३३४ ।