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अमर मानव
[ लेखक-श्री सन्तराम पी०५० ] एक फौजी डाक्टर लिखता है,-"चिकित्सा- हमने उसे ईथरसे अचेत किया, उसका पेट
शास्त्र ही रोगियोंकी प्राण-रक्षा नहीं कर चीरकर खोला, उसके छेदोंको सिंया और दूसरी सकता। कोई भी डाक्टर, जिसने युद्ध-क्षेत्रमें काम सभी आवश्यक बातें की। बड़े आश्चर्यकी पास किया है, यह बात जानता है। अनेक ऐसे मनुष्य है कि, वह जीता बच निकला। ईथरका असर दर देखने में आये हैं, जिनको दवा-दारू और शस्त्र. होते ही वह बड़े पलके साथ बोला-"मैं बिलकुल चिकित्सा बचानेमें सर्वथा विफल रही और घायल ठीक हूँ।" उसके निकट ही एक दर्जन दूसरे मनुष्य केवल अपनी इच्छाशक्तिसे ही तन्दुरुस्त र
सिपाही भयङ्कररूपसे आहत पड़े थे। उनमें से एक होकर पुन: लड़नेके लिये क्षेत्रमें चले गये।"
खम्भ की तरह उठकर बैठ गया। उसने भायोबाके
सिपाहीको ध्यानपूर्वक देखा और खिलखिलाकर मैं एक उदाहरण देता हूँ । सन् १९१८ में हँस पड़ा । वह बोला,-"यदि यह इस कष्टमेसे शेरोथियरीके मोर्चेके पीछे एक अस्थायी अस्पताल- जीता निकल सकता है, तो मैं भीबच सकता हूँ।" में कई घायल सिपाही पड़े थे। उनमें आयोवाका एक आयरिशमैन भी था । एक गोली उसके उस दिनसे लेकर एक सप्ताह पीछेवक, जब मैं. दाहिने पार्श्वमें, हँसलीकी हड़ीके पीछेसे धुसी और बदलकर दूसरे सेक्षनमें चला गया, रोगी मुके उसके फेफड़े, डायाफ्राम ( Dmphromy प्रणाम कहने के बजाय यही कहा करतापित्तकोष और यकृतमेंस होकर निकल गयी थी। "डाक्टर ! मैं बिलकुल तन्दुरुस्त हो जाऊँगा, नेरी उसकी अंतदियोंमें १३ छेद हो गये थे, उनमेंसे कुछ चिन्ता न कीजिये।" वह एक ऐसा मानव दुहरे रम्ध थे।
बन गया, जो मरेगा नहीं और उसने अपने
इर्द-गिर्द के दूसरे घायलोंमें जीते रहनेका निश्चय मैंने पूछा-"क्या वह होश में था ?"
कर दिया ! उसकी अवस्था कई बार बिगड़ी, "बिलकुल होशमें, और बातें करता था। तापमान बहुत ऊँचा हो गया, नाड़ी तेजीसे चलने जब हम उसके शरीरकी परीक्षा कर रहे थे और लगी और बड़े ही दुःखद लक्षण प्रकट हुए; परन्तु आपरेशनकी तैयारी हो रही थी, तो उसने इतने अपने पारपार होनेवाले चित्तभ्रमोंमें एकबार भी उच्च स्वरसे कहा, जिसे कि, अस्पतालमें मौजूद उसका यह विश्वास शिथिल न हुमा कि, मैं बना प्रत्येक सचेत मनुष्यने सुना,-"डाक्टर ! मैं बिल- हो जाऊँगा। कुल तन्दुरुस्त हो जाऊँगा, मेरी कुछ चिन्ता इसने यसके द्वारा सन्देश भेजने भारम्भ न कीजिये।"
किये। वह नर्ससे कहता,-"भाप जाकर उस