________________
भनेकाता , माप, वर
विसं
. यदि इसमें कोई कटु अथवा अयोग्य वाक्य नजर वर्णनमें मैं अपना महोभाग्य समझता हूँ।
भाये तो उसे दुखित हृदयके दावानलको चिनारी यतिसमाज ही क्यों साधु समाजकी दशा भी समझ मुझे क्षमा करेंगे । एक स्पष्टीकरण और विचारणीय एवं सुधारयोग्य है। इस पर भी भी आवश्यक है कि इस लेख में जो कुछ कहा बहुत कुछ लिखा जा सकता है। समयका सुयोग गया है वह मुख्यताको लक्ष्य में रखकर ही लिखा मिला तो भविष्य में इन दोनों समाजों पर एवं है, अन्यथा क्या यति समाजमे और क्या चैत्य- इसी प्रकार जैनधर्मके क्रियाकाण्डोंमें जो विकृति वासियोंमें पहले भी बहुत प्रभावक आचार्य एवं . भा गई है, उस पर भी प्रकाश डालनेका विचार महान् पात्माएँ हुई हैं एवं अब भी कई महात्मा है। बड़े उच्च विचारोंके एवं संयमी हैं। इनको मेरा
'तक्या मोसवाब' से उत्कृत भक्तिभावसे वंदन है। उन महानुभावोंके गुण
x
जीवन के अनुभव
बावली घास
[लेखक-श्री हरिशंकर शर्मा ]
नावले आदमी, बावले कुत्ते, बावले गीदड़, बावले सेर चायका पानी पीते । यहाँ तक कि बैसाख और
बन्दर श्रादि तो मबने देखे सुने होंगे, परन्तु जेठमें भी उसे न छोड़ते थे । तिस पर भी तुर्ग यह कि 'बावली घाम' से बहुत कम लोग परिचित हैं । फिर मजे कटोरा-भर चायमें दूधका नाम नहीं । अगर भूलसे की बात यह है कि पशु पक्षी और मनुष्य तो बावने होकर चायमें एक चम्मच भी दूध पड़ जाय, तो वे उसे जीव-जन्तुओंकी जानके गाहक बन जाते हैं; परन्तु अस्वीकार कर दें । प्रकृति भला किसको क्षमा करने 'नवली घाम' मरते हुए को अमृत पिलाती है, और नमे वाली है ? पिताजी पर भी उसका कोप हुआ, और दुःखसे मुक्त कर वर्षों जिलाती है । एक सर्वथा सत्य उन्हें भयंकर :रक्तार्श (खुनी बवासीर ) से व्यथित घटनाके आधार पर आज हम पाठकोंको बावली घास होना पड़ा। यह घटना अबसे ३० वर्ष पहिले की है। का कुछ परिचय कराते हैं।
मेरे पूज्य पिता (स्वर्गीय पं० नाथूराम शङ्कर शर्मा ) चायके बड़े आदी थे। उनकी यह टेव व्यसन पहले तो पिताजीके शौच-मार्गसे थोड़ा-थोड़ा खन तक पहुँच गई थी। वे सुबह-शाम दोनों वक्त श्राध श्राध अाया, फिर तिल्लियाँ अँधने लगीं। यहाँ तक कि वे