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बनेकान्त (साब, वीर विकसं० २५॥ महामास शानिमम का यह सूत का रस और अपने स्माको भोक 01 जाति है। परन्तु इस सनये भारतवर्ष में सब मिला कर याँ सामाजिक कारणोंसे बन गई । जैसे प्रत्येक जाति २७३८ जातियाँ हैं। अब प्रश्न यह होता है कि मूलक के दस्सा, चीता, पाँचा प्रादिभेद और परवारों के उक्त चार वर्षों में से ये हजारों जातियाँ कैसे बन गई?- चौसखे, दोसखे आदि शाखायें । कुछ जातियाँ विचार इस विषयमें इतिहासकारोंने बहुत कुछ छानबीन की है। भेदसे या धर्मसे बन गई है जैसे वैष्णन और जैन; खंडेहम यहाँ जाति बनने के कारण बहुत ही संक्षेपमें बत- लवाल, श्रीमाल, पोरवाई, गीलापरव आदि । लाएंगे।
पेशोंके कारण बनी हुई भी बीसों जातियाँ हैं, जैसे
सुनार, लुहार, धीवर, बढ़ई, कुम्हार, चमार आदि । . कुछ जातियाँ तो भौगोलिक कारणोंसे-देश प्रान- इन पेशेवाली जातियों में भी फिर प्रांत, स्थान, भाषा नमरोंके कारण बनी है। जैसे ब्राह्मणोंकी श्रौदीच्य, श्रादिके कारण सैकड़ों उपभेद हो गये हैं। कान्यकुब्ज, सारस्वत, गौड़ आदि जातियाँ और वैश्यों
सुप्रसिद्ध इतिहासकार स्वर्गीय काशीप्रसाद की. श्रीमाली, खण्डेलवाल, पालीवाल या पल्लीवाल, जायसवालने अपने 'हिन्दु-राजतन्त्र' नामक ग्रन्थमें अोसवाल, मेवाड़ा, लाड आदि जातियाँ। उदीची बतलाया है कि कई जातियाँ प्राचीन कालके गणतंत्रों अर्थात उत्तर दिशाके प्रौदीच्य, कान्यकुब्ज देशके या पंचायती राज्योंकी अवशेष है, जैसे पजाबके अरोड़े कान्यकुब्ज या कनबजिया, सरस्वती तटके सारस्वत (अरह) और खत्री (क्सपोई) और गोरखपुर आजमगढ़
और गौड़ देश या बंगालके गौड़ । इसी तरह श्रीमाल जिलेके मल्ल आदि । अभी अभी डाक्टर सत्यकेतु विद्यानगर जिनका मूल स्थान था वे श्रीमाली कहलाये, जो लंकारने अग्रवाल जाति के इतिहासमें यह सिद्ध किया है ब्राह्मण भी है, वैश्य भी हैं और सुनार भी हैं। इसी कि अग्रवाल लोग 'आग्रेय' गणके उत्तराधिकारी हैं । तरह खडेलाके रहनेवाले खंडेलवाल, पालीके रहनेवाले ये गणतंत्र एक तरह के पंचायती राज्य थे और अपना पालीवाल या पल्लीवाल, ओसियाके श्रोसवाल, मेवाड़के शासन बार ही करते थे। कौटिल्यने अपने अर्थशास्त्र मेवाड़ा, लाट (गुजरात) के लाड श्रादि । यहाँ यह में इन्हें 'वाशिस्त्रोप नीवी' बतलाया है। 'वार्ता' का बात ध्यान में रखने योग्य है कि जब किमी गजनीतिक अर्थ कृषि, पशुपालन और वाणिज्य है । ये तीनों कर्म या धार्मिक कारणमे कोई समूह अपने प्रांत या स्थानका वैश्योंकि हैं । इसके साथ शस्त्र धारणं मी वे करते थे । परिवर्तन करके दूसरे स्थानमें जाकर बसता था, तबसे ये महिलवादा सोंकी राजा मूलराज (ई. नाम प्राप्त होते थे और नवीन स्थानमें स्थिर-स्थावर हो जाने के लिये विन ब्राह्मण परिवारों को जाने पर धीरे धीरे उनको एक स्वतंत्र जाति बन जाती -
बन जाती उत्तर भारतसे पुजारभपने यहाँ बसाया था, उन ही यी। उदीची या उत्तरके ब्राह्मणोंका दल जब गुजरात मोदीयते।। में प्राकर बसा तंब यह स्वाभाविक था कि वह अपने
४ इनका जोर प्राचीन ग्रन्थों में भी मिलता है, जैस अपने ही दल के लोगोंके साथ सामाणिक सम्बन्ध
सम्बन्ध परन्तु यह ।
पेटेकी पाचानक रूपमें, वर्तमान जतिस्पर्म नही पैसे प्रोपगारवाई भादि ।